Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar

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Page 7
________________ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् है। 'थर' रेगिस्तानवाची 'थल' का सिन्धी रूप है। कच्छ के इरिण (रन्न) प्रदेश के उत्तर का समस्त भू-भाग पारकर देश था। (८) कच्छ :- सिन्ध के ठीक दक्षिण में कच्छ जनपद था। पाणिनि मुनि ने कच्छ के मनुष्यों को काच्छक कहा है और वहां के लोगों के हास्य आदि विशेषताओं का भी संकेत किया है (४।२।१३४)। (९) केकय :- यह जनपद वर्तमान में झेलम, शाहपुर और गुजरात प्रदेश का पुराना नाम था (७ ।३।२)। वहां इस समय खिउड़ा की नमक की पहाड़ी है। केकय एक राजाधीन जनपद था। वहां के निवासी क्षत्रिय कैकेय कहाते थे। (१०) मद्र :- यह जनपद प्राचीन वाहीक (पंजाब) देश का उत्तरी भाग था। इसकी राजधानी शाकल (वर्तमान-स्यालकोट) थी जो कि आपगा (वर्तमान-अयक) नदी पर अवस्थित है। यह छोटी नदी जम्बू की पहाड़ियों से निकलकर स्यालकोट के पास से होती हुई वर्षा ऋतु में चन्द्रभागा (चनाब) नदी में मिल जाती है। (११) उशीनर :- पाणिनि मुनि के अनुसार उशीनर वाहीक (पंजाब) देश का ही एक जनपद था। महाभारत में शिबि को उशीनर जनपद का राजा कहा है (वनपर्व १९४।२)। शिबि की राजधानी शिबिपुर थी जिसकी पहचान वर्तमान शोरकोट (झंग जिले की एक तहसील) से की गई है। ऐसा ज्ञात होता है कि रावी और चनाब नदी के बीच का भू-भाग जो कि मद्र जनपद के दक्षिण में था, उशीनर प्रदेश कहलाता था। वह दो भागों में बंटा हुआ था। आजकल के झंग मधियानावाला उत्तरी भाग उशीनर जनपद था और दक्षिण में शोरकोट के चारों ओर के क्षेत्र का नाम शिबि जनपद था। (१२) अम्बष्ठ :- पाणिनि मुनि ने अष्टाध्यायी (८।२७) में अम्बष्ठ और आम्बष्ठ इन दो नामों की सिद्धि की है। यह जनपद राजाधीन था और इसके निवासी आम्बष्ठ्य कहाते थे। महाभारत के अनुसार अम्बष्ठ लोग युद्ध में कौरवों की ओर से लड़े थे जो कि अत्यन्त वीरपुरुष थे। ये चन्द्रभागा (चनाब) नदी के निचले भाग में बसे हुये थे। (१३) त्रिगर्त :- रावी, व्यास और सतलुज इन तीन नदी-घाटियों के बीच का प्रदेश त्रिगर्त कहलाता था। इसी का एक पुराना नाम जालन्धरायण भी था। अब भी त्रिगर्त (कांगड़ा) का प्रदेश जालन्धर कहलाता है। रावी और व्यास के संकरे नाके में होकर त्रिगर्त का रास्ता था जो कि आज भी है। (१४) कलकूट :- महाभारत सभापर्व के अनुसार कालकूट और पाणिनि मुनि का कलकूट (४।१।१७३) कुलिन्द प्रदेश में था (महा० २६ ॥३)। कालकूट जनपद ठीक टोंस (तमसा) नदी और यमुना के प्रदेश (देहरादून-कालसी) में पड़ता है। यह यमुना की ऊपर की धारा का यामुन प्रदेश था। यहां अंजन की उत्पत्ति के कारण इस यामुन पर्वत का नाम कालकूट या कालापहाड़ होना स्वाभाविक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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