Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02 Author(s): Sudarshanacharya Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar View full book textPage 9
________________ २७७ २८० २Xo २८२ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् सं० विषयाः पृष्ठाङ्काः सं० विषयाः पृष्ठाकाः २१. लट् (अपरोक्षे स्मे) २२९ |१८. क्वरप् (निपातनम्) (त०क०) २७२ २२. लट्-विकल्प: २३० १९. ऊक: (त०क०) २७३ २३. लुङ्+लट् (अनद्यतने २०. र: (त०क०) . २७४ भूतेऽस्मे पुरि) __ २३१ | २१. उ: (त०क०) २७५ ___ वर्तमानकालप्रत्ययप्रकरणम् | २२. उ: (निपातनम्, त०क०) २७६ १. लट् (करि, कर्मणि, भावे च) २३३ | २३. उ: (त०क०, छन्दसि) २. शतृ+शानच् (लडादेश:) २३३ | २४. कि:+किन् (त०क०, छन्दसि) २७७ ३. सत्-संज्ञा २३७ | २५. नजिङ् (त०क०) २७९ ४. शानन् (कतरि, कर्मणि च) २३८ | २६. आरु: (त०क०) २७९ ५. चानश् (कतीर, कर्मणि च) २३९ / २७. क्रुक्+क्तुकन् (त०क०) ६. शतृ (कर्तरि) | २८. वरच् (त०क०) २८१ तच्छीलादि कर्तृप्रकरणम् (वर्तमानकाले) | २९. क्विप् (त०क०) १. तृन् (तच्छीलादिषु कर्तृषु) २४४ | ३०. डु: (क० वर्तमानकाले) २८४ २. इष्णुच् (त०क० २४५ ३१. ष्ट्रन् (कतीर, करणे, ३. क्स्नुः (ग्स्नुः) (त०क०) २४८ वर्तमानकाले) ४. क्नु: (त०क०) २४९ | ३२. इत्र: (करणे, वर्तमानकाले) २८८ ५. घिनुण (त०क०) २५० | ३३. क्त: (कतीर, वर्तमानकाले) २९१ ६. वुञ् (त०क०) २५६ / तृतीयाध्यायस्य तृतीयः पादः ७. युच् (त०क०) वर्तमानकालप्रत्ययप्रकरणम् ८. युच्-प्रतिषेधः २६२ | १. उणादय: प्रत्ययाः ९. उकञ् (त०क०) २६३ /२. भूतेऽपि दर्शनम् २९४ १०. षाकन् (त०क०) २६५ | भविष्यत्कालप्रत्ययप्रकरणम् ११. इनि: (त०क०) २६५ १. गमी-आदय: २९५ १२. आलुच् (त०क०) २६७ / २. लट् (यावत्पुरानिपातयोः) २९६ १३. रु: (त०क०) २६८ | ३. लट्+लुट्+लुट् (कदाकोः ) २९७ १४ क्मरच् (त०क०) २६९ ४. लट्+लुट्+लुट १५. घुरच् (त०क०) २७० । (किंवृत्ते लिप्सायाम्) २९८ १६. कुरच् (त०क०) . २७० ५. लट्+तृट्+लुट् १७. क्वरप् (त०क०) २७१ | (लिप्स्यमानसिद्धौ) For Private & Personal Use Only २८५ २९३ २९९ Jain Education International www.jainelibrary.orgPage Navigation
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