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बाबाजी
श्री सहजानन्दजी के दर्शन करने की बड़ी तीव्र इच्छा है मैंने कहा भाई ! तुम्हारी मां को लेकर आने के लिए पूज्य श्री काकाजी को तार और फोन द्वारा कहा जा चुका है और वे कल पहुंच जावेगें । मनोहर ने कहा भाईजी ! मेरी मां को कैसे लावगे । वह तो रेल में भी घबराती है प्लेन में तो आ नहीं सकेगी। यदि किसी भी तरह एक वार उसके दर्शन हो जाते तो अच्छा होता " मैं उसे आश्वासन देता रहा पर भावी प्रबल है, जब उसकी माता और उसकी पत्री पहुंची तब तक उसकी नाशवान देह, भस्म के रूप में परिणत हो कर पतितपावनी गंगा के अजस्र प्रवाह में विलीन हो चुकी थी
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उसकी दूसरी प्रबल इच्छा गुरुदेव के दर्शनों की थी। उसने कहा भाई जी ! मुझे गुरुदेव के दर्शन कराइये। मैं ने गुरुदेव का एक चित्र मनोहर को अस्पताल में दिया । उसने अनन्य भक्ति पूर्व के मस्तक के लगाया और मुझे गुरुदेव का प्रत्यक्ष दर्शन कराने के लिए आग्रह किया । मैंने कहां भाई तुम एक काम करना । तुम्हें आज रात को गुरुदेव के दर्शन अवश्य होगें । उसने कहा कि मुझे मार्ग बताइये । मैने कहा " अपने शरीर की सारी वेदना भूलकर - श्वासोच्छवास के साथ गुरूदेव का स्मरण करना और आत्मा के अविनाशीपत का सतत् ध्यान रखना । पूर्ण व्याकुलता के साथ गुरुदेव का स्मरण करने से, वे तुम्हें अवश्य दर्शन देंगे एवं उस समय यदि तुम अपने अध्यवसायों को एकाग्र रख सके तो तुम्हें उनकी वाणी भी सुनाई देगी। उसने मेरे कथन को स्वीकार किया एवं मुझे कहाकि मैं आपक कथनानुसार ऐसा ही करूंगा । आप मेरी ओर से प्रभु शान्तिनाथ भगवान
चरण भेट एवं स्नात्रपूजा करादें । मैने जब दूसरे दिन प्रभुचरण भेटने की बात कही तो उसने अनुमोदन करते हुए कहा कि कल फिर मेरे नाम से पूजा करें,
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