Book Title: Panch Bhavnadi Sazzaya Sarth
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Bhanvarlal Nahta

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Page 120
________________ पद संग्रह १०१ निज अनुभव घर में बसौ, ए मानि निहोरा हो । १। सां० मिथ्यामत दूरै हरौ, करौ ज्ञान सजोरा हो । पर त्रीय की मति लाग कै, क्यूं भूलत बौरा हो । २। सां० समता कहै साहिब अम्हे, सेवक नित तोरा हो। ए कुलटा आइ आई बूढ़ा, सो तो कहो भोरा हो ।३। सां० राचि रहे इन संगत सुज्य, शशि चित्त चकोरा हो । मुंह मीठी दिल री धीठी, ए अनुभव की चोरा हो। ४। सां० देवचन्द अरु सुमति मिले जब, भागे भ्रम सोरा हो । तब निज गुण इक वल्लभ लागत, अवर न लाख करोराहो ।५ सां० दिरागाजी खान भंडार जयपुर, बनारसीविलास गुटके से] आतम भाव रमो हो चेतन ! आतम भाव रमो। पर भावे रमता हो चेतन ! काल अनंत गमो हो । रागादिक सुमलीने चेतन ! पुद्गल संग भमो । चउगति मांहे गमन करंतां, निज आतम ने दमो हो चे०।२। ज्ञानादिक गुण रंग धरी ने, कर्म को संग वमो। आतम अनुभव ध्यान धरंतां, शिवरमणी सुरमो हो चे०३। परमातम नु ध्यान करंतां, भव स्थिति मां न भमो। देवचन्द्र परमातम साहिब, स्वामी करी ने नमो हो चे०॥४॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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