Book Title: Panch Bhavnadi Sazzaya Sarth
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Bhanvarlal Nahta

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Page 118
________________ पर संसह चक्रवर्ति से अधिक सुखी, मुनिवर चारित लीन है। क्षयकोपशम पयड़ी चढ, आतम रस सुधीन । चक्रवत्ति ते अधिक सुखी, मुनिवर चारित लीन १० तूर्य ध्यान ध्यावत समै, कीयै करम सब छीन । चक्रवति ते अधिक सुखी, मुनिवर चारित लीन ॥११॥ देवचन्द्र वावै सदा, यह मुनिकर गुनः बीन । चक्रवत्ति ते अधिक सुखी, मुनिवर चारित लीन ॥१॥ इति प्राकृत भाषायासमस्या दोधक द्वादस कृता पं० 'देवचन्द्रण पद संग्रह (१) पंचेन्द्रिय विषय त्याग-पद चेतन छोड़ दे, विषयन को परसंग। मिरोइ फिरत विलोल फरस वश, बंधोइ फिरत मातंग।१चे। कंठ छिदायो मीन आपनो, रसना के परसंग। नेत्र विषय कर दीप शिखा पै, जल जल मरत पतंग ।रचे। षटपद जलज मांहे फंस मूरख, खोयो अपनो अंग। वीणा शब्द सुण श्रवण ततखिन, मोही मर्यो रे कुरंग ।३चे। एक एक इन्द्रिय चलत बहु दुःख, पायो है सरभंग। पाँचों इन्द्रिय चलत महादुख, भाषत १ देवचन्द चंग।४चे। १ इम भाषत देवचन्द - - Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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