Book Title: Panch Bhavnadi Sazzaya Sarth
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Bhanvarlal Nahta

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Page 127
________________ १०८ गजसुकुमाल मुनीश्वर सज्झाय वत्स ! मन भाव दुक्कर घणो, जीपवो मोह भूपाल रे, विषय सेना सहु वारवी, तमे छो बाल सुकुमाल रे. मा० २१ मातजी निज घर आंगणे बालक रमे निरबीह रे, तेम मुज आतम धर्म में, रमण करतां किसी बीह रे मा० २२ मोह विष सहित जे वचनडा, ते हिवें मुज न छिबंत रे, परम गुरु अमृत वचनथकी, हुँ थयो उपशमवंत रे मा ० २३ भवतणो कंद हवें भाजवो, साधवो मोह अरिवद रे, आतमानंद आराधवो, साधवो मोक्ष सुखकंद रे. मा० २४ नेमथी कोई अधिको होवे (तौ) मानिये तास वचन्न रे, माताजी कांई नवि भाखिये, माहरे संयमें मन्न रे मा० २५ ॥ढाल (३) ॥ धन धन साधु शिरोमणि ढंढ गौ ॥ धन धन जे मुनिवर ध्याने रम्या रे, समतासागर उपशमवंत रे विषय कषायें जे नडिया नहीं रे, साधक परमारथ सुमहंतरे धन० जादवपति परिवारे परिवर्यो रे, नेमि चरणे पहुंता गजसुकुमाल रे मात पिता भ्रातें वहिराविया रे, नंदन बाल मनोहर चाल रेध० प्रभुमुख सर्वविरति अंगीकरी रे, मुकी सरव अनादि उपाधिरें पूछे स्वामी कहौ केम नीपजे रे, मुज ने वहेली सिद्धिसमाधिरे ध० प्रभुभाखे निज तत्व एकाग्रता रे, उदय अव्यापकता परिणाम रे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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