Book Title: Panch Bhavnadi Sazzaya Sarth
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Bhanvarlal Nahta

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Page 125
________________ गजसुकुमाल मुनीश्वर सज्झाय त्रिभुवनपति श्री नेमजिणंद, आव्या सुणी हरख्या गोविंद, सजी सांमईयो वंदन काज, हरखें बांधा श्री जिनराज, चे० ३ लघु चयें पण श्री गजसुकुमाल, रूप मनोहर लील विशाल, वीतराग वंदन अतिरंग, सुविवेकी आवे उछरंग चेतन० ४ समवसरण देखी विकसंत, त्रिकरणजोर्गे अति हरखंत, धन धन माने निज मनमांहि, गयो पाप हुँ थयो सनाह. चे०५ कुमरे वंदी जिनवर पाय, आनंद लहरी अंग न माय, निःकामी प्रभु दीठा जांम, विसरी वामा ने धन धाम चे० ६ जिन मुख अमृत वयण सुगंत, भाग्यो मिथ्या मोह अनंत, दरशन नाण चरण सुखखांण, शुद्धातम निज तत्व पिछाण चे०७ परपरिणत संयोगी भाव, सर्व विभाव न सुद्ध स्वभाव, द्रव्यकर्म नोकर्म उपाधि, बंध हेतु पमुहा सवि व्याधि च े० ८ तेही भिन्न अमूरति रूप, चिन्मय चेतन निज गुण रूप, • श्रद्धा भासन थिरता भाव, करतां प्रकटे शुद्ध स्वभाव चं० ६ नेमि वचन जाग्यो वडवीर, धीर वचन भाषे गंभीर, देहादिक ए मुजगुण नांहि, तो किम रहेवु मुजए मांहि चे१० जेहथी बंधाये निजतत्व, तेहथी संग करे कुण सत्व, प्रभुनी रहेकुँ करि सुपसाय, हुं आबुं माता समजाय. चे० ११ १०६ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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