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॥ भावना भवनाशिनी ॥ अध्यात्मरसिक श्री देवचन्द्रजी कृत साधु की पांच भावनायें
दोहा स्वस्ति सीमंधर पाम, धर्मध्यान सुख ठाम । स्यादवाद परिणामधर, प्रणमूच तन-राम ॥१॥
भावार्थ-किसी भी शुभकार्य के प्रारम्भ में मंगलाचरण करना आवश्यक है। मंगल दो प्रकार के माने जाते हैं,-द्रव्य और भाव । द्रव्य-मंगल की लौकिक-कार्यों में प्रधानता रहती है, तथा लोकोत्तर कामों में भाव-मंगल काम में लिया जाता है। सारे भाव मंगलों में प्रथम मंगल-अरिहंत है, +अत: ग्रन्थकर्ता इस विधि का पालन कर रहे हैं।
धर्मध्यान रूपी सुख के स्थान, स्याद्वाद के परिणामों को धारनेवाले, आत्म स्वरूप में रमण करने वाले, महा विदेह क्षेत्र में विचरने वाले कल्याणकारी श्री सीमंधर स्वामी को प्रणाम करता हूँ। अरिहंतव सिद्धस्वरूपी चेतन्य आत्मा को भी प्रकारान्तर से नमस्कार है ।१।।
महावीर जिनवर नमी, भद्रबाहु सूरीश । वंदी श्री जिनभद्र गणी, श्री क्षेमेन्द्र मुनीश ॥२॥ +मंगलाणं च सम्बेसि पढमं हवइ मंगलं। (नमस्कार सूत्र )
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