Book Title: Pallival Jain Jati ka Itihas
Author(s): Anilkumar Jain
Publisher: Pallival Itihas Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 129
________________ 100 पल्लीवाल जेन जाति का इतिहास 'जैन सिद्धान्त भाष्कर' मे लेख प्रकाशित करते हुये काव्य की काफी प्रशंसा की थी। ग्रन्थ के नाम से उसका विषय स्पष्ट है कि भगवान नेमिनाथ का जीवन सबधी यह सुन्दर काव्य है। कवि मनरगलाल का 'चौबीस पाठ' 'सप्त ऋषि पूजा', 'सप्त व्यसन चरित्र' और 'शिखर सम्मेलन महात्म्य' नामक अन्य रचनायो का उल्लेख प माधोराम शास्त्री ने अपने लेख मे किया था ।अत कवि की प्राप्त समस्त रचनाओ का सग्रह ग्रन्थ प्रकाशित हो सके तो बहुत ही अच्छा हो। प्रकाशित के अनुसार कवि का परिचय इस प्रकार है - कन्नौज मे श्रावको का एक समुदाय था जो अधिकाश अपना समय जिनेन्द्र पूजा, सैद्धान्तिक चर्चा आदि धार्मिक कार्यो मे लगाकर समय व्यतीत करता था। उस समुदाय मे हल्लासराय नामक श्रावक का भी नाम था । हुल्लासराय प्राय अपना पूरा समय देव, शास्त्र, गुरु के पूजा पाठ मे तथा तत्व चर्चा में लगाया करते थे। ये इक्ष्वाकुवशी थे, इनकी जाति 'पल्लीवाल' और गौत्र 'शिव' था। इनके दो पुत्र थे, जिनमे जेष्ठ पुत्र कनौजीलाल और कनिष्ठ गोविन्दराम थे। शुभ कर्मोदय से कनौजीलाल को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, जिसका नाम मनरगलाल रखा गया। कन्नौजीलाल को अन्य पुन रत्नो की भी प्राप्ति हुई, किन्तु सबमे जेष्ठ मनरगलाल थे मनरगला के सुयोग्य मित्र गोपाल दास थे । इन दोनो मे मैत्री भाव अत्यन्त घनिष्ठथा। गोपालदास जिनेन्द्र देव, शास्त्र और गुरु मे अत्यन्त श्रद्धा रखते थे। शास्त्र प्रेमी थे। छल कपट और क्रोध के लिए इनके अन्दर स्थान नहीं था। इनके पिता का नाम खुस्यालचन्द्र था। गोपालदास शास्त्रो का सग्रह करने के लिये हमेशा कटिबद्ध रहते थे। इन्ही के अनुरोध से तथा इनके वचनो को अमृत समान अत्यन्त प्रिय समझ कर मनरगलाल ने नेमिनाथ की चन्द्रिका नाम की पुस्तक की रचना जेठ सुदी 11 गुरु स. 1860 नक्षत्र स्वाति सूर्य के उत्तरायण मे पूरी की।

Loading...

Page Navigation
1 ... 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186