Book Title: Pallival Jain Jati ka Itihas
Author(s): Anilkumar Jain
Publisher: Pallival Itihas Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 175
________________ प्रवशिष्ट अलवर राज्य के जैन दीवान अलवर राज्य की स्थापना एवं उसके विकास तथा सचालन मे दिगम्बर जैन धर्मानुयायी पल्लीवाल जाति में उत्पन्न दीवानो का योगदान उल्लेखनीय है । ये दीवान महाराजा साहब के अत्यन्त विश्वासपात्र थे तथा राज्य सचालन में दक्ष थे। अलवर राज्य के सस्थापक महाराजा प्रतापसिह (1740 से 1771) जी ने जब माचेडी से अलवर को अपनी राजधानी बनाया तो उनके साथ दीवान रामसेवक जी भी अलवर आये तथा बहुत समय तक शासन को सुव्यवस्थित करने में अपना योग दिया। ये अलवर राज्य के प्रथम दीवान थे। महाराजा प्रतापसिह जी के पश्चात् महाराजा बख्तावरसिह जी (179 to 1815) से अलवर के शासक बने । इनके दीवान थे रामलाल जी जो रामसेवक जी के सुपुत्र थे। ___इन्होने भी अपनी निष्ठा एव शासन दक्षता में महाराजा का मन जीत लिया और जब तक जीवित रहे दीवान पद को सुशोभित करते रहे। महाराजा बनेसिह जी (1815 से 1857) के समय मे पहिले सालगराम जी और फिर बालमुकुन्द श्री दीवान हुये तथा अपनी शासनदक्षता के कारण राज्य में अत्यधिक लोकप्रिय हुये। ये चारो ही दीवान जैन धर्मानुयायी थे तथा पल्लीवाल जाति अलवर राज्य मे पल्लीवाल जाति के विशाल सख्या होने का प्रमुख कारण भी इन दीवानो को अपने जातीय भाइयो को सरक्षण प्रदान करना हो सकता है । अलवर नगर में माज भी इन दीवानो की बडी बडी हवेलियाँ हैं जो अपने पूर्व वैभव की कहानी को जैसे सबको सुनाती रहती हैं। पूरा चौक ही दीवानो के चौक के नाम से जाना जाता है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186