Book Title: Pallival Jain Jati ka Itihas
Author(s): Anilkumar Jain
Publisher: Pallival Itihas Prakashan Samiti

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Page 179
________________ 'पल्लीवाल शब्द : 'एक दृष्टि' 149 साखा है । उस सिंघवी गोत्र के इतिहास में पल्लोवाल शब्द ही प्राया है। अस्तु उपरोक्त वाद- विवाद पर और भी गहरी दृष्टि डालने से ज्ञात होता है कि पल्लीवाल शब्द ही है, जब कि हमको माज करीब 2000 वर्षों के इतिहास से अपनी जैन जातीय अन्तरगत पल्लीवाल जाति के लिये 'पल्ली' शब्द ही मिलता है । तब आज हम को किस न्याय से किस कारण, किस इतिहास, किस सिध्दान्त से इस पल्लीवाल शब्द को बदलकर पाली शब्द मानना चाहिये । मेरी समझ मे तो आता नही, जिसकी समझ मे आवे वह महाशय इसका प्रमाण सहित प्रकाश करे । पूर्ण निर्णय करके तब बदलना होगा। यो तो आजकल कुछ हर बात में धीगाधीगी होती ही है । (2) पालोवाल ब्राह्मण (6) ईसा की बारहवी शताब्दी मे मारवाड के 'पालो' नगर मे सनाढ्य ब्राह्मणो को एक बडी बस्ती थी । राठौड वश की स्थापना से पूर्व मडोर के प्रतिहार शासको ने उन्हे पालो और उसके आस-पास के क्षेत्र का अधिकार सौ पा था । पाली में रहने के कारण ये ब्राह्मण पालीवाल नाम से प्रसिध्द हो गये । ये लोग बहुत ही सपन्न थे । सपन्नता की चरम सीमा पर पहुँचने के बावजूद वे कभी शाति पूर्ण जीवन व्यतीत नही कर पाये । असाधारण सपत्ति के कारण वे लुटेरो की आँखो मे खटकते रहे । कभी जन-जातियो ने तो कभी लुटेरो ने उन्हे लूटा । निरन्तर लूटपाट के भय से सन् 1193 मे (एक अन्य मान्यतानुसार वि स 1292 के लगभग) उन्होंने निश्चय किया कि कन्नौज के राठौड़ राजा के पोते सियाजी की मदद लेवे जो कि उस समय उनके क्षेत्र से गुजर रहा था । सिवाजी ने उनकी सुरक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी स्वीकार कर ली । बदले में उसकी

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