Book Title: Pallival Jain Jati ka Itihas
Author(s): Anilkumar Jain
Publisher: Pallival Itihas Prakashan Samiti

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Page 180
________________ 150 पल्लीवाल जैन जाति का इतिहास कुटिलता से बेखबर अनुग्रहीत ब्राह्मणो ने सियाजी को पाली मे निवास करने का आमन्त्रण दे दिया । पालीवाल ब्राह्मण फिर परेशानी में पड गये । होली के दिन सियाजी ने धोखे से पालीवालो के प्रमुख सदस्यों की हत्या कर मारवाड में राठौड वंश के शासन की नीव रख दी । लाचार पालीवाल, पाली पर मुसलमानो के आक्रमण तक, वही रहते रहे । प्राक्रमण के समय उन्होने युध्द मे अनुदान देने से साफ इन्कार कर दिया, फलस्वरूप राजा ने उन्हे देश निकाला दे दिया । अपना देश छोड़ने के बाद उनके सामने यह प्रश्न उठा कि वे कहाँ जाये । उन्होने तय किया कि अब वे ऐसा स्थल ढढेंगे जो भौगोलिक दृष्टि मे सुरक्षित हो और जहाँ ग्राक्रमण का खतरा न हो । यही सोचकर उन्होने जैसलमेर में रहने का निर्णय लिया । चूकि पालीवाल कुशल व्यापारी थे, इसलिए उन्हे जैसलमेर जैसे प्रदेश को भी सपन्न बनाने मे सफलता मिली। कर्नल टॉड ने उनकी इस व्यापारिक कुशलता का उल्लेख करते हुये लिखा है कि उस समय समस्त प्रान्तरिक व्यापार उनके ही हाथ मे था और उन्ही के पैसे से वहा के व्यापारी अन्य प्रान्तो के साथ व्यापार करते थे । वे किसान को उसकी फसल गिरवी रख कर आर्थिक मदद देते थे । प्रदेश की सरी ऊन और घी खरीदकर दूसरे प्रातो मे बेचते थे । मरु प्रदेश मे खडीन मे पानी एकत्रित कर सिचाई व्यवस्था उन्होने ही की थी। पेदावार मे इतनी रुचि वे इसलिये और भी लेते थे क्योकि वे शासन को बतोर कर के दी जाने वाली पैदावार भी खरीदते थे। कुल मिलाकर पालीवाल जैसलमेर आकर प्रसन्न थे I किन्तु भाग्य न फिर उनका साथ छोड दिया । स्वरूपसिह मेहता के दीवान पद पर आसीन होते ही उनके परेशानी के दिन प्रारंभ हो गये । दीवान स्वरूपसिंह के निरकुश व्यवहार से प्रजा हताश होने लगी । स्थिति तब और भी बिगड़ गयी जबकि स्वरूपसिंह की मृत्यु के बाद उसका बेटा सालिम सिंह

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