Book Title: Pallival Jain Jati ka Itihas
Author(s): Anilkumar Jain
Publisher: Pallival Itihas Prakashan Samiti

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Page 167
________________ स्वतन्त्रता मान्दोलन में पल्लीवाल जाति का योगदान 137 श्री कातिचन्दजी था जो पटवारी थे। 1933 में उनका स्थानान्तरण अलवर हो गया, अत तभी से आप भी अलवर में ही रहने लगे व प्रापका विद्यार्थी जीवन यही निकला । 1938 से क्रातिकारी गति विधियो मे देशी राज्य व ब्रिटिश राज्य के विरुद्ध भूमिगत रह कर कार्य शुरू किया । कुछ नोजवानो को सगठित कर अरावलो को श्रृखलामो मे छुप कर बम बनाना व अन्याय के विरुद्ध परचे निकालना शुरू किया। क्रातिकारी साहित्य की पुस्तकालय स्थापित कर लोगो में ऐसे साहित्य का वितरण करते रहे । गुप्त रूप से हस्तलिखित नवजागरण मासिक पत्रिका राजस्थान में निकालते । एक बार पैसे की दिक्कत आई तो अपने घर से जेवर लेकर हथियार इक्ट्ठा करने धन को देदिया । प्रथम बार सन् 1942 में भारत छोडो आन्दोलन में पहले दशहरे के दिन अपने सगठन के कार्यकर्तामो के साथ तार काटे । बाद में दिवाली के दिन शहर के पोस्ट आफिसो व तमाम लेटर बक्सो में आग लगाई व दिवाली की दोज (11-11-1942) को प्रथम बार आप गिरफ्तार हुए व आपके विरुद्ध षडयन्त्र के व आगजनी (120 to 435' PC) के अन्दर मुकदमे में चालान हुआ व फलस्वरूप 2 साल 6 माह की सख्त सजा दी गई। वहाँ से मुक्त होने के बाद आप विद्यार्थी संगठन मे पूर्ण रूप से लग गये । प्रत सन् 1944 मे आप अलवर राज्य विद्यार्थी काग्रेस के अध्यक्ष व 1945 मे राजपूताना के विद्यार्थी को सगठित करने के फलस्वरुप राजपूताना विद्यार्थी काग्रेस के अध्यक्ष चुने गये । सन् 1946 मे अलवर राज्य मे ‘गैर जुम्मेदार मिनिस्टरो की छोडो" अन्दोलन हुआ, उसमे भी आप सर्व प्रथम व्यक्ति थे, जो जेल गये । 1948 मे भारत आजाद होने के बाद मापने पुलिस में उपनिरिक्षक के पद पर कार्य किया । उसमे बहुत मेहनत व ईमानदारी से कार्य करने के फलस्वरूप प्रापने बहुत अच्छी

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