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स्वतन्त्रता मान्दोलन में पल्लीवाल जाति का योगदान
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श्री कातिचन्दजी था जो पटवारी थे। 1933 में उनका स्थानान्तरण अलवर हो गया, अत तभी से आप भी अलवर में ही रहने लगे व प्रापका विद्यार्थी जीवन यही निकला । 1938 से क्रातिकारी गति विधियो मे देशी राज्य व ब्रिटिश राज्य के विरुद्ध भूमिगत रह कर कार्य शुरू किया । कुछ नोजवानो को सगठित कर अरावलो को श्रृखलामो मे छुप कर बम बनाना व अन्याय के विरुद्ध परचे निकालना शुरू किया। क्रातिकारी साहित्य की पुस्तकालय स्थापित कर लोगो में ऐसे साहित्य का वितरण करते रहे । गुप्त रूप से हस्तलिखित नवजागरण मासिक पत्रिका राजस्थान में निकालते । एक बार पैसे की दिक्कत आई तो अपने घर से जेवर लेकर हथियार इक्ट्ठा करने धन को देदिया । प्रथम बार सन् 1942 में भारत छोडो आन्दोलन में पहले दशहरे के दिन अपने सगठन के कार्यकर्तामो के साथ तार काटे । बाद में दिवाली के दिन शहर के पोस्ट आफिसो व तमाम लेटर बक्सो में आग लगाई व दिवाली की दोज (11-11-1942) को प्रथम बार आप गिरफ्तार हुए व आपके विरुद्ध षडयन्त्र के व आगजनी (120 to 435' PC) के अन्दर मुकदमे में चालान हुआ व फलस्वरूप 2 साल 6 माह की सख्त सजा दी गई। वहाँ से मुक्त होने के बाद आप विद्यार्थी संगठन मे पूर्ण रूप से लग गये । प्रत सन् 1944 मे आप अलवर राज्य विद्यार्थी काग्रेस के अध्यक्ष व 1945 मे राजपूताना के विद्यार्थी को सगठित करने के फलस्वरुप राजपूताना विद्यार्थी काग्रेस के अध्यक्ष चुने गये । सन् 1946 मे अलवर राज्य मे ‘गैर जुम्मेदार मिनिस्टरो की छोडो" अन्दोलन हुआ, उसमे भी आप सर्व प्रथम व्यक्ति थे, जो जेल गये ।
1948 मे भारत आजाद होने के बाद मापने पुलिस में उपनिरिक्षक के पद पर कार्य किया । उसमे बहुत मेहनत व ईमानदारी से कार्य करने के फलस्वरूप प्रापने बहुत अच्छी