Book Title: Paiavinnankaha Part 01
Author(s): Kastursuri, Somchandrasuri
Publisher: Rander Road Jain Sangh

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Page 130
________________ 42 बायालीसइमी पुण्ण-विक्कमपहावे पुण्णसार-विक्कमसाराणं कहा पुण्णोदएण सोक्खं वा, कासइ विक्कमेण वा / पुण्ण-विक्कमसाराणं, इह रम्ममुदाहियं / / 1 / / आसि खिइपइट्ठियनामं नयरं, तत्थ पुण्णजसो नाम नरिंदो अहेसि, तस्स य पिया सुहगंगी अस्थि / अह तत्थ पुरम्मि धणड्डसुओ पुन्नसारो नाम, बीओ विक्कमवणिणो सुओ विक्कमसारो नाम आसि / ते दोवि अहिगयकलाकलावा तारुण्णं समणुपत्ता / एगया ते वियारिंति-'तारुण्णे पत्ते वि जइ लच्छीए अज्जणं न होज्जा, तया अणज्जचरियस्स तस्स को पुरिसगारो ? / जाव जस्स लच्छी दाणाइकिरियासु वुच्छेयं न एइ, ताव तस्स जसो, जणसोहग्गं च / तत्तो पणयजणवंछियत्थकरणओ कयचमक्कारा जह सिरी समुग्घडइ, तह जत्तो कायव्वो / तेण अणुसरिमो देसंतरं। आरोहेमो परक्कमगिरिम्मि, तो अम्हाणं जणवल्लहा लच्छी दुल्लाहा नो भविस्सइ' / तओ कयपत्थाणा जा सत्थसन्निवेसं गया, ताव पढमस्स पुण्णसारस्स विहिवसओ तत्थ खणणेण महंतो निहि समुवट्ठिओ, तं गिण्हिऊण गेहं समागओ, तदुचिएसु कज्जेसु लग्गो / बीओ विक्कमसारो पुणो जलहिपारगमणेण लद्धधणो तुलाए जीवं आरोविऊण नियगेहं पत्तो / सो वि य सधणोचियकिरियासु तं सिरिं विलसिउं परिलग्गो / नयरम्मि ताणं पवाओ संजाओ “जह एसो पुण्णसारो पोढपुन्नपब्भारो संपत्तसयलवंछियलच्छीविच्छड्डो सुहिओ, बीओ य पुणो विक्कमसारो दारुणजलहितरणसंजायगरुअधणरिद्धी बंधुवग्गसहिओ भोगे भुंजइ / ता एएसिं मज्झे पढमो अईव पुण्णबलिओ दइवेण संजुओ अत्थि, बीओ वि अखलियपसरो ववसायपरो पुरिसकारण जुत्तो अत्थि” / रन्ना एसो पवाओ निसुओ, अइकोउगाओ सहाए ते सद्दाविआ, पुट्ठा य किं एसो पवाओ सञ्चो, अण्णहा व त्ति / तेहिं भणियं-“जणप्पवाओ वितहो न होज्जा जओ पायं अइपच्छन्नं पि कयं कजं लोगो सज्जो वियाणेइ” / एवं सोच्चा रन्ना तेसिं परिक्खा आरद्धा / पढमो पुण्णसारो एगागी चिअ भोयणस्स कए निमंतिओ / महाणसनरा वि भणिया-“अज्ज तुम्हेहिं रसवई न कायव्वा, जओ एयस्स पुण्णवसेण पत्तं अम्हेहिं भोत्तव्वं" / अह पत्ते भोयणसमए महादेवीए संपेसिओ महल्लो अंतेउररक्खगो विन्नवेइ –“अज्ज देवीगिहम्मि तुम्हेहिं भोत्तव्वं, जओ अज्ज जामाउओ नियनयराओ किं पि पयोयणत्थं समागओ अत्थि / तस्स निमित्तं सुओदणाइभेयं साउभोयणं पसाहियं, ता देव ! तुमए सद्धिं भुंजतो सो सोहागं लहेज्जा" / तो ते सव्वे वीसत्था तं भोयणं भुंजीअ / अन्नदिवहे बीओ विक्कमसारो भोयणत्थं निमंतिओ / सव्वे वि रसवईए पसाहगा भणिया-'लहुं चेव भोयणं कुणेह' / तेहिं सव्वायरेण भोयणं उवट्ठियं कयं, भोयणावसरे आसणेसुं दिन्नेसुं, उवट्ठिए भत्ते समाणे, तया रायसुयाए अट्ठारसरससमन्निओ आमलगथूलमुत्ताहलुब्भडो हारो निन्निमित्तं पि तुडिओ, दीणाणणा य रुयंती रायसुआ पिउस्स पासम्मि समागम्म भासइ-मे हारो इण्डिं पोइज्जउ, नन्नहा भोयणं काहं ' इअ जंपिए तो नरवई

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