Book Title: Paiavinnankaha Part 01
Author(s): Kastursuri, Somchandrasuri
Publisher: Rander Road Jain Sangh

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Page 172
________________ दव्वपूआए दुग्गयनारीए कहा-५४ 143 उवएसो नायं विप्प-पुल्लिंदाणं, सोचा तत्तावबोहगं / सया 'जत्तेण कायव्वा, भावभत्ती सुनिम्मला' / / 2 / / भावभत्तीए पुलिंदस्स तिपण्णासइमी कहा समत्ता / / 53 / / -जयंतीचरिआओ 54 चउपण्णासइमी दव्वपूआए दुग्गयनारीए कहा भावो वि दव्वपूआए, सग्गसोक्खपयायगो / .. दिटुंतो दुग्गया नारी, जिणपूअणमाणसा / / 1 / / एगया भयवंतो महावीरो गामाणुगामं विहरमाणो कार्यदि नयरिं समागओ / तत्थ उज्जाणे देवा समवसरणं अकरिंसु / समोसरणे उवविसित्ता चउम्मुहो सिरिमहावीरो देव-नर-तिरिय-परिसाए देसणं करेइ / कायंदीनयरीए नरवई जियारिभूवई उज्जाणपालगमुहाओ सिरिवीरपहुस्स आगमणं सोच्चा नयरीमज्झे आघोसणं कारवेइ-'भो भो लोगा ! लोगालोगपयासगो केवलनाणदिवागरो सिरिवीरो भयवंतो नयरीए उज्जाणे समवसरिओ, पञ्चूसे जियारिनरिंदो सव्विड्डीए वंदिउं वच्चिहिइ, तओ तुम्हेहिं पि सो तित्थयरो वंदणिज्जु' त्ति / इमं आघोसणं तन्नयरनिवासिणी आजम्मदालिद्ददुया जराजिण्णंगी एगा कावि दुग्गयनारी थेरी सोच्चा चिंतीअं / पुव्वभवे किंपि सुकयं न कयं, तेणेह भवे दुहिया जाया / इह भवे वि किंपि दाणाइसक्कम्मं न कयं, तेण परलोगे वि मज्झ दुहं चिय भविस्सइ, हा ! ! धिद्धि मं, भवकोडीसु वि दुल्लहं माणुसं जम्मं निब्भग्गाए मए हारिअं। अओ अज्ज वि सिरिमहावीरं नच्चा, धम्मं सोच्चा, तन्नयणसरोयं दट्टणं जम्मस्स फलं गिहिस्सं / परंतु तत्तो पञ्चायाया कहं भोयणं अहं काहं ?, हा नायं-'कट्ठभारिगाणयणविक्कएण भोयणं मे भविस्सइ' त्ति विचिंतित्ता गिरिनईसमीववट्टिगिरिणो पासंमि गंतूण कट्ठभारं गिण्हित्ता गिरिनई समागया / तत्थ हत्थपायं पक्खालिऊण चिंतेइ-सिरिमंतो जणा वरपुप्फेहि जिणवरं पूयंति, 'सिरीए सव्वं सिज्झइ' मम उ ताई नत्थि, अओ अहं मुहालब्मेहिं सिंदुवारेहिं तुच्छकुसुमेहिं सव्वण्णुं पूइस्सं' तओ नईतीरे ठियाई तुच्छपुप्फाइं उच्चिणित्ता वत्थंचले बंधिऊण वीरप्पहुं वंदिउं अग्गओ निग्गया / राया वि पञ्चूसे गयवरारूढो हयगय-पाइक्का-णीगेहिं समन्निओ सव्विड्डीए सिरिवीरवंदणाय निग्गओ, तह य नगरलोगा सपरिवारा सालंकारविभूसिया निग्गया / जियारिनरिंदो कट्ठभारसहियं सणियं सणियं गच्छंतिं तं दट्टणं पसण्णमणो जाओ, तेण नियसेणावई आइट्ठो-'मा एणं थेरिं को वि मद्देज्जा' / अह सा दुग्गयनारिआ वद्धमाणसुहभावा वद्धमाणजिणीसरं झायंती

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