Book Title: Paiavinnankaha Part 01
Author(s): Kastursuri, Somchandrasuri
Publisher: Rander Road Jain Sangh
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________________ दव्वपूआए दुग्गयनारीए कहा-५४ 145 विवन्नं नञ्चा अग्गिणा सक्कार करावेसी / तओ समोसरणे पविसित्ता तिपयाहिणं किञ्चा नायउत्तं महावीरं वंदेइ, पच्छा सव्वे य साहुणो / तयणंतरं देसणासवणं अकासी / पच्छा विरइयंजली राया पुच्छित्था / हे पहु ! एसा वुड्डा मरिऊण कत्थ उप्पन्ना ? / महावीरो आह-एसा दुग्गयनारा मधुं पावित्ता सोहम्मे देवो होत्था / ओहिनाणेण पुव्वभवं णाऊण मं नमिउं एत्थ समागओ, तुज्झ पुरओ ठिओ महिड्डीए विरायमाणो एस देवो नायव्वो / पुणो नरिंदेण पुढे-'जावज्जीवं अणासेवियधम्मा कहं एसा देवत्तणं पत्ता' ? / पहू आह-'जिणपूआकरणभावणाए एसा थेरी दिव्वं देविड्डिं पत्ता' / एवं सोच्चा सव्वजणो विम्हयवियसियलोयणो अहो ! ! पूआकरणभावणा वि महाफल त्ति वएइ, / भयवंतो वि आह-मणागं पि सुपत्तविसयसुहभावो जणाणं फलपरंपरं देइ, जओ पुण्णाणुबंधिपुण्णाणुभावाओ इमीए थेरीए सुहभावविवडणं भाविवइयरं सुणेज्जा अयं थेरीजीवो पूआपुण्णेण सग्गसोक्खाई अणुभवित्ता, तओ चविअ कणयपुरंमि कणयधओ राया होही, अखंडसासणं रज्जं पालेयंतो एगया भुजंगमेण गसिज्जमाणं दडुरं, तं पि कुररेण, कुररं अयगरेण गिलिज्जमाणं निरिक्खित्ता जायसुद्धबुद्धी एवं भाविस्सइ-बलिणा वि दुब्बलो वरागो लोगो पीलिज्जइ' एवं झायंतो अप्पकम्मा जाईसरणं पाविस्सइ, तओ रज्जं चइत्ता पव्वजं गहिस्सइ, निरइयारं चारित्तं पालित्ता सग्गे गच्छिहिइ, तओ चइत्ता अउज्झानयरीए उच्चकुले जम्मं पावित्ता बालवयंमि संजमं लभ्रूण सक्कावयारचेइए केवलनाणं लहित्ता कमेण मोक्खसुहं पाविस्सइ / इअ सिरिवीरजिणवरस्स वयणं सोञ्चा-'अहो धम्मस्स माहप्पं' ति पसंसित्ता लोगा वीरपहुणो पासंमि जहसत्तिं वयनियमे अभिगिण्हित्था / तओ पहुं नच्चा नियं नियं ठाणं सव्वे गया / सिरिमहावीरजिणंदो वि अण्णत्थ विहरित्था / उवएसो नायं दुग्गयनारीए, वीरचाभावणोजलं / सोचा जिणचणे भव्वा ! उज्जमेह सुभत्तिओ' / / 4 / / दव्वपूआए दुग्गयनारीए चउपण्णासइमी कहा समत्ता / / 54 / / -सद्धदिणकिञ्चे 1. संस्कारम् / / 2. पक्षिविशेषः (टिटोडी) / /

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