Book Title: Paiavinnankaha Part 01
Author(s): Kastursuri, Somchandrasuri
Publisher: Rander Road Jain Sangh
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________________ 100 पाइअविनाणकहा-१ वेणीछेओ अज्ज कओ' / तं सुणिऊण मंती चिंतेइ-'अचिंतं कम्मं, जं तारिसे चोज्जहेउम्मि पडियारे विहिए वि एयारिसं दारुणं वसणं समावडिअं'ति / जइ वि एरिसमवराहं सेवंताणं एयारिसो चिय दंडो होज्जा, तह वि नरिंदं पेच्छामि त्ति तेण नियपुरिसा भणिआ / तओ सो नरिंदसहाए गंतूण कुद्धं नरणाहं पणमिअ भणइ-'जहा देव ! मंजूसाए मज्झे दिट्ठम्मि, तत्तम्मि वियारिए तओ मज्झ महंतो दंडो जुज्जइ, जेण सुवियारियकारित्तणं होज्जा' / एवं होउ त्ति भन्निए जाव जंति मंजूसापासम्मि, तीए मुद्दाओ तहच्चिय तालगाइं च पेच्छंति / पुरपरियणपञ्चक्खं तालुग्घाडणे कए, निभालंति छुरियावेणीहत्थं सुपसन्नमुहं सचिवपुत्तं / तओ सव्वे वि अच्छे रजुअं सज्झसं परिवहंता अन्नोन्नमुहनिवेसिअदिट्ठिणो परिजंपिउं लग्गा ‘हे अमञ्च ! किमेयं अच्छेरयं दीसइ ?' / स पडिभणइ-“देवो च्चिअ परमत्थं एत्थ वियाणइ, न उण अन्नो, जस्स गिहे मंजूसा पाहरिया य, जस्स दत्तमुद्दाओ, जस्स तालगाई दिण्णाई तत्थ को अन्नो वियाणगो होउ” / मूढत्तणं पत्तो रायावि भणेइ-'अयं तुज्झ णाणविसओ' / तओ रन्ना अलंकारेहिं सक्कारिओ मंती भणेइ-“हे देव ! एत्तियमेतं मए विन्नायं, जह मम सुयाओ सव्वविणासो होहिइ, ण उणो वेणिच्छेयाउ त्ति, तओ मंजूसाए संगुत्तो पुत्तो तुहं समुवणीओ, जेण तुह पञ्चए जणिए अवराहठाणं अहं न होमि / अओ णज्जइ पुव्वभवंतरवेरी को वि णूणं सुरो होज्जा, जेण मज्झ वसणकए एयागारधरेण तेण सुरेण एवं सव्वं अणुट्ठिअं" ति संभाविज्जइ / तओ संजायपच्चएहिं सव्वेहिं एवमेयं ति भणियं / 'कहमनहा एसो तुज्झ पुत्तो सुरक्खिओ इणं कज्जं कुणेज्जा' ! हे देव ! अचिंतं कम्मं कयपडिकारं पि जं एवं फलइ, बुद्धिमंताणं चरियं पि कम्मस्स पसरं जं हरइ। अओ लद्धावसरं कत्थइ बलियं कम्म, तह य पुरिसयारो वि कत्थइ बलिओ होइ / एवं परिणयवणिआणं जारिसं चरियं, तारिसं चिअ चरिअं कम्मपुरिसगाराण णेयं / जहुत्तं कत्थइ जीवो बलिओ, कत्थइ कम्माई होंति बलियाई / कत्थइ धणिओ बलवं, धारणओ कत्थइ बलवं / / 3 / / एवं सोच्चा रण्णा बहुपूइओ सो णाणगब्भो मंती नियनाम समाणचेट्ठिओ होउं सिरिं तह जसं च लोए पत्तो / / उवएसो नाणगब्भस्स मंतिस्स, देव्वदिट्ठट्ठवारणं / सोचा भे चरियं 'होह, मईए कजसाहगा' / / 4 / / फलदाणसमुत्थिअ-असुहकम्मनिवारणे णाणगब्भमंतिस्स एगचत्तालीसइमी कहा समत्ता / / 41 / / -उवएसपयाओ 1. धारणक: 'देवादार' इति भाषायाम् / /

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