Book Title: Paiavinnankaha Part 01
Author(s): Kastursuri, Somchandrasuri
Publisher: Rander Road Jain Sangh
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________________ भावधम्मे इलाइपुत्तस्स कहा-४७ 127 इलाइसुएण लंखिया भणिया ‘सुवण्णसमं देहि मम दारियं' / तेहिं भणियं-'अक्खयनिही एसा अम्हाणं, णवरं जइ एयाए कज्जं, ता अम्हेहिं समं भमसु, कलं च सिक्खसु' / तओ वारिजंतो वि माय-पियसयण-वग्गेहिं, अगणिऊण उभयलोगाववायं, ताण मज्झमि पविठ्ठो / जणयाइणो विमणदुम्मणा पडिनियत्ता / एसो वि तेहिं सह विहरमाणो सिप्पमब्भस्संतो विनायडं पत्तो / विवाहदव्वनिमित्तं रायं ओलग्गिउं पवत्तो / रन्ना दिन्नो पेच्छावसरो / समाढत्तं पेच्छाणय / निविट्ठो राया महादेवीए सह सीहासणे / नागरया य संपत्ता / इलाइपुत्तेण नाणाविहविन्नाणेहिं आवज्जियाणि लोगाण चित्ताणि। नरिंदे य अदिंते न देइ लोगो / राया पुण दारियाए बद्धरागो तस्स वहणत्थं तं भणइ-लंख ! पडणं करसु / सो य पाउआओ परिहित्ता असिखेडयहत्थो वंसग्गस्स अड्डुकट्ठोवरिं विविहकीलाहिं कीलइ / जइ कहवि चुक्केज्ज, तया धरणीए पडिओ सयखंडो होज्जा ! लोएण साहुक्कारो कओ / नरिंदे अदिते न जणो देइ / राइणा भणियं-'सम्म न दिढे, पुणो करेसु' / तेण दुइयवारं पि कयं / एवं तइयवारं पि कयं / पुणो वि रण्णा मारणत्थं अलज्जेण भणियं-'चउत्थं वारं कुणसु, जेण अदरिदं करेमि'। लोगो नरिंदाओ पिच्छियव्वाओ य विरत्तचित्तो नियत्तो / वंससिहरट्ठिओ इलाइपुत्तो चिंतिउं पवत्तो-'धिरत्थु कामभोगाणं, जेण एस राया एईए रंगोवजीवियाए निमित्तं च मम मरणमभिलसइ। कहं च एयाए परितुट्ठी भविस्सइ ?, जस्स महंतेणावि अंतेउरीवग्गेण तत्ति ण जाया / ता धिरत्थु मे जम्मस्स / जं ण लज्जियं गुरुणो, न चिंतियं लहुयत्तणं, न निरूवियं जणणि-जणय-दुक्खं, परिचत्ता बंधुमित्त-नागरया, नावलोइअं संसारभयं सव्वहा निरंकुसगइंदेण व्व उम्मग्गगामिणा मए / इमं सयलजणनिंदणिज्जलंखयकुलमणुसरंतेण मलिणीकओ कुंदधवलो तायवंसो / ता संपयं कत्थ वञ्चामि ?, किं करेमि ?, कस्स कहेमि ?, कहं सुज्झिस्सामि त्ति ? एवंविहचिंताउरेण तेण समीवत्थे कम्मि वि ईसरधरंमि देवंगणासरिसरूवाहिं वहूहिं पूइज्जते मुणिणो दट्टण चिंतिअं—'जे महियमयणा जिणिंदमग्गं समल्लीणा ते धण्णा कयपुण्णा / अहं तु एत्तियकालं वंचिओ म्हि, जं न सेविओ जिणधम्मो / एण्हिं पि एयाण आणाए समणधम्म करेमि त्ति एवं वेरग्गमग्गपडियस्स समारोवियपसत्थभावस्स सुक्कज्झाणाण मज्झे गयस्स विसुज्झमाणलेसस्स समासाइयखवगसेढिणो समुप्पन्नं केवलं नाणं / संपत्ता देवया, भणियं च अणाए। 'पडिवज्ज दव्वलिंगं, जेण वंदामो' / पडिवन्ने दव्वलिंगे, देवयाए वंदिओ / पत्ता तियसा, निव्वत्तियं सीहासणं, तत्थ निसन्नो सुरासुरनरिंदेहिं वंदिओ इलाइपुत्तकेवली दुविहं धम्म वागरेइ / सव्वे नियनियसंदेहे पुच्छंति / केवलिणा वागरिया / विम्हियमणाए परिसाए पुच्छियं-'भयवं ? कहं पण एयाए लंखकन्नाए उवरिं ते एरिसो रागो जाओ' / तओ निययवुत्तंतं कहिउं आढत्तो 'इओ य तइअभवे वसंतपुरनयरे अहं दियवरसुओ आसि / एसा पुण मे भारिया / निम्विन्नकामभोगाणि तहारूवाणं थेराणमंतिए पव्वइयाणि / मुणियभवसरूवाण वि अवरुप्परं नेहो णावगओ / तओ देवाणुप्पिआ ! अहं उग्गं तवं काऊण आलोइयपावकम्मो नमोक्कारपरो मरिऊण सुरालए समुववन्नो ! एसा पुण जाइमयावलित्ता 1. वेन्नातटं नगरविशेषः / / 2. प्रेक्षितव्यात् / / 3. अनया / / 4. परस्परम् / /

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