________________
पाहुड-दाहा
मिती पौष शुक्ल ६ शुकरवार संवत् १७९४ ॥ लिपतं विरजभान श्रावग पाणीपथनगरमध्ये शुपाठनाथ ॥ श्री शुभं अस्तु कल्याणं अस्तु ।
इससे विदित हुआ कि यह प्रति आज से लगभग दो सौ वर्ष पूर्व पानीपत में लिखी गई थी। इसमें दोहों की संख्या २२० है । दोहा नं. ७१ और १४२ नहीं हैं। हमने अपनी प्रयम कापी इसी प्रति पर से तैयार की थी।
क. यह प्रति एक गुटके के अन्तर्गत है इस गुटके में और भी कई छोटी मोटी संस्कृत प्राकृत रचनाओं का संग्रह है। इसका परिचय श्रीयुक्त उपाध्ये जी, अनेकान्त में प्रकाशित, अपने एक लेख में दे चुके हैं। इसका आकार ५३० x ५" है। इस गुटके की दशा बड़ी शोचनीय है। प्रारम्भ के सात आठ पन्ने गायब हैं
और अंत के दस बारह पन्ने अधकट हो गये हैं। बीच के पंन्ने यत्र तत्र दीमक के भक्ष्य हुए हैं। कितने ही पन्नों की स्याही उड़ गई है जिससे कहीं कहीं पढना दुःसाध्य और कहीं। काहीं असम्भव है।
पाहुइ दोहा इस गुटके के पृष्ठ ६२ से ८१ तक है। उसका पूर्व कुछ सद्धान्तिक गाथाएँ लिखी हुई हैं और पश्चात् योगीन्द्रदेव कृत परमात्मप्रकाश है।
प्रारम्भ-ॐ नमः सिद्धेभ्यः ।