________________
शताब्दी समर्चना पूज्यपाद शासनसम्राट वालवहाचारी आचार्यमहाराज श्रीविजयनेमिसूरीश्वरजी महाराजसाहेवना आचार्यपद-शताव्दीवर्पनो अवसर आव्यो अने पूज्यपाद शासनसम्राटश्री द्वारा रचित ग्रंथोना पुनः प्रकाशननी, वर्षोथी अंतरमां सेवेली भावना फरी जागृत थई गई, अने आ स्वरूपे पूज्यश्रीनी भक्ति करवानो 'भाव पूज्यपाद गुरुभगवंत श्रीविजयशीलचंद्रसूरीश्वरजी महाराजसाहेवनी सत्प्रेरणाथी वधु प्रवळ वन्यो.
आम तो नव्यन्यायनी शैलीमा पूज्यश्रीना रचेला स्वतंत्र ग्रंथो के टीका ग्रंथोनुं संपादन ए अमारा गजा उपरांतनुं साहस ज गणाय. छतां पण पूज्यश्रीनी भक्ति स्वरूपे स्वीकारेलुं आ साहस पण अमारा माटे ज्ञाननी नवी दिशा उघाडनाएं वनशे एवी श्रन्द्रा छे.
आ भावना-अन्वये शासनसम्राट्शताव्दी-ग्रंथमालाना प्रथम पुष्परूपे हमणां ज सप्तभङ्गीप्रभानु पुनः प्रकाशन कार्य सम्पन्न थयु. ए पछीना पुष्प तरीके न्यायसिन्धु-ग्रंथy प्रकाशन कार्य पण पूर्ण थयेल छे जे अमारा माटे आनंदनो विषय छे. आ ग्रंथ पण सप्तभङ्गीप्रभानी जेम पूज्यश्रीनी स्वतंत्र रचना ज छे.
__ आ ग्रंथमा जैनदर्शनमान्य प्रमाण - नय अने निक्षेपना स्वरूपनुं वर्णन पूज्यश्रीए नव्यन्यायनी शैलीमां विशद रीते कर्यु छे.
तेमां
सर्वप्रथम, ज्ञान, स्वरूपदर्शन, तेना साकार, निराकार, सविकल्पक, निर्विकल्पक व. भेदोनुं निरूपण; ते अंगेनी वौद्धादि दर्शनोनी मान्यताओ दर्शावीने स्याद्वादशैलीओ तेनुं खंडन करवामां आव्युं छे.
त्यारवाद, न्यायदर्शनमान्य इन्द्रियप्रमाण दर्शावीने जैनदर्शनमान्य इन्द्रियोना स्वरूपनुं वर्णन कर्यु छे. अने कापिलादि दर्शन सम्मत ज्ञानना एकान्त स्वतस्त्व/परतस्त्वनुं निरूपण तथा खंडन करीने स्याद्बादमान्य ज्ञानना स्वतस्त्व-परतस्त्वनी स्थापना करी छे.
ते पछी, वेदोंने अपौरुपेय (नित्य) माननारा तथा सर्वज्ञने नहि माननारा मीमांसकोनो मत दर्शावीने तेमां दोपदर्शन कराववापूर्वक खंडन करीने विस्तारथी सर्वज्ञनी सिद्धि करी छे.
त्यारवाद, वेदान्तमान्य माया - अविद्या - जगतनुं ब्रह्मात्मकत्व व. पदार्थोनुं निरूपण तथा खंडन कर्यु छे अने जैनदर्शन सम्मत उत्पाद-व्यय-धौव्यरूप सत्ता ज नामान्तरे अन्यदर्शनमान्य माया छे ते सिद्ध कर्यु छे.
ते पछी, नैयायिक सम्मत आत्माना नित्यत्व-विभुत्व तथा जगतनुं ईश्वरकर्तृकत्व व. सिद्धान्तोनी विशद चर्चा करीने तेमां दोपो दर्शाव्या छे.
ते पछी, चार्वाक-सांख्यादि मतोनुं विस्तृत निरूपण तथा तेआनुं खंडन कर्यु छे. अन जैनदर्शनमां अन्य दर्शनो कई रीते समावेश पामे छे ते दर्शाववामां आव्युं छे. अने ते रीते स्याद्वाद साथे तेओनुं सख्य स्थापित कर्यु छे.
त्यारवाद, अन्यदर्शनसम्मत प्रमाणोनी संख्या, कथन तथा जैनदर्शनमान्य प्रत्यक्ष तथा परोक्ष प्रमाणनी चर्चा विस्तारथी करवामां आवी छे. तेमां पारमार्थिक प्रत्यक्षप्रमाणरूप केवलज्ञान तथा केवलदर्शन युगपत् होय के
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org