Book Title: Nischay Vyavahar Author(s): Bharat Pavaiya Publisher: Bharat Pavaiya View full book textPage 4
________________ व्यवहार १. व्यवहार नय अर्थात पर्यायार्थिक नय। २. व्यवहारसे पूज्यपुरूषोंकीदेहकास्तवन कियाजाता है। ३. व्यवहार नय अभूतार्थ है अर्थात विशेषता को दृष्टि में रखकर विषमता को पैदा करने वाला है। ४.. छट्टे गुणस्थान तक व्यवहार आराधनाहोती है। . ५. वचन विकल्पात्मक ही व्यवहार आराधना है। . ६. वचनात्मक द्रव्य नमस्कार के द्वारा वंदना करना व्यवहार नय है। ७. जो पुरुष अशुद्ध व नीचे की अवस्था में स्थित है उनके लिये व्यवहार नयही कार्यकारी है। ८. व्यवहार नय से आत्मापुद्गल कर्मों का कर्ता होता है। ९. व्यवहार नय से जीव के रागादिऔर वर्णादि ऐसे दोनों भाव १०. किंतुजो अपनीशुद्ध आत्मा का अनुभव नहीं कर रहा हैं,न उसकी भावना कर रहा है, केवल बर्हिविषयक द्रव्य श्रुत के विषय भूत पदार्थों को जानता है वह व्यवहार श्रुत केवली ११. अशुद्ध निश्चय नय से होने वाले जीव के (रागादिरूप) परिणाम को जो करता है वह मोह को लिये हुये अज्ञानी बहिरात्माहोता है।Page Navigation
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