Book Title: Nischay Vyavahar
Author(s): Bharat Pavaiya
Publisher: Bharat Pavaiya

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Page 16
________________ व्यवहार चारित्र है । यह व्यवहार मोक्ष मार्ग है । ४९. ज्ञानी जीव के दर्शन, ज्ञान और चारित्रये तीन भव व्यवहार नय से कहे जाते है । ५०. व्यवहार नय से तीर्थ चलता है । ५१. व्यवहार नय कहता है कि जीव और शीरर एक ही है । जो स्तुति, वंदना, भक्ति आदि क्रियायें है ये सब व्यवहार नय की अपेक्षा से ही होती है । ५२. जीव में कर्म बंधे है और स्पर्शित है ऐसा व्यवहार नय कहलाता है । ५३. व्यवहार नय द्वारा पुण्य और पाप के भेद से दो रूप होकर इस रंगभूमि में प्रवेश करता है । ५४. आगम भाषा में व्यवहार को वीतराग सम्कत्त्व कहते हैं । ५५. पर द्रव्य को आत्मा व्यवहार से जानता है, देखता है । ५६. जो अशुभ कर्म है वह तो निंदनीय है, बुरा है अतः छोड़ने योग्य है, किंतु शुभ कर्म सुहावना है, सुखदायक है इसलिए उपादेय है, ग्रहण करने योग्य है । ऐसा कुछ व्यवहारवादी लोगों का कहना है । ५७. जीवादि नव पदार्थों का विपरीत अभिप्राय से रहित सो सही श्रद्धान है वही सम्यग्दर्शन है। उन्हीं जीवादि पदार्थों का संशय - उभय कोटि ज्ञान, विमोह विपरीत एक कोटि ज्ञज्ञन, विभ्रम अनिश्चित ज्ञान, इन तीनों से रहित जो यथार्थ अधिगम होता है, निर्णय कर लिया आता है, जान लिया जाता है वह सम्यग्ज्ञान कहलाता है और उन्हीं के संबंध में होने वाले जो रागादिक विभाव होते है उनको दूर हटा देना सो 16 -

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