________________ ये आत्मा के गुण हैं। जैन मत में व्यवहार नय यद्यपि निश्चय नय की अपेक्षा मिथ्या है किंतु व्यवहार रूप में तो सत्य ही है। यदि लोक व्यवहार रूप में भी सत्य न हो तो फिर सारा लोक व्यवहार मिथ्याहोजावे, ऐसा होने पर कोई भीव्यवस्था नहीं बने। 'पहिले के किये हुए कार्यों से ममत्व रहित होनाप्रतिक्रमण है। आगे नहीं करने का दृढ़ संकल्प करना सो प्रत्याख्यान है और वर्तमान के कार्यों से भी दूर रहना आलोचना कहलाती है। जो प्रतिक्रमण को प्रत्याख्यान को और आलोचना को निरंतर करता रहता है वह ज्ञानी जीव निश्चय से चारित्रवान होता है। निश्चय रत्नत्रय तो मुख्य है और व्यवहार रत्नत्रय उपचार रूपहै। परमात्मा बन जाने का नाम तो कार्य समयसार है और परमात्मा से पूर्व की सन्निकट सम्बन्धित अवस्था का नाम कारण समयसार है, जिसको उत्कृष्ट अन्तरात्मा कहा जाता है। व्यवहार मोक्षमार्ग और निश्चय मोक्षमार्ग दोनों ही मोक्ष मार्गमुमुक्षु के लिए उपयोगी होते हैं। जो सहज शुद्ध परमात्मानुभूति लक्षणवालेव लिंग से तो रहित है, किंतु द्रव्य लिंग में (बाहरी वेश भूषा में) ही ममता करते है वे आज भी समयसार को नहीं जानते। . समयसार के अपर नाम :- सामान्य परिणामी, जीव स्वभाव, परम स्वभाव, ध्येय, गुह्य, परम तथा तत्त्व ये सब समयसार के अपर नाम हैं। स्वाध्याय तप:- स्व - अपने लिए हितकर जो श्रुत का सम्यक अध्ययन है वह स्वाध्याय है। बारह प्रकार के तप में स्वाध्याय के समान तपन हुआ है और नहोगा। किसी भी शास्त्र की किसी भी गाथा का अर्थ, प्रकरण प्रसंग, अनुयोग, नय-विवक्षा और द्रव्य गुण पर्याय का अनुसरण कर अध्ययन करना चाहिए। 32