Book Title: Nischay Vyavahar
Author(s): Bharat Pavaiya
Publisher: Bharat Pavaiya

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Page 19
________________ निश्चय वस्तुओं का त्याग कर आत्मा को ही मानना, उसे ही जानना और उसी में ही तल्लीन होना यह तो निश्चय मोक्षमार्ग है जो कि एक ही प्रकार है उसमें भद नहीं है। ६६. अध्यात्म भाषा में वही सुद्धता के अभिमुख परिणाम स्वरूप शुद्धपयोग नाम पाता है। पंचम गुणस्थान से उपर वाले को ही सम्यग्दृष्टि को ही यहाँ पर सम्यग्दृष्टि माना गया है। ६७. निश्चय नय के द्वारा वे लोग यह जानते है कि इन बाह्य वस्तुओं में परमाणु मात्र भी कुछ मेरा नहीं है (बाह्य वस्तुओं-पर द्रव्य) ६८. निश्चय से तो जो कर्ता है सो ही कर्म है। जीव अपने परिणाम स्वरूप कर्म को करता है तो उस चेष्टा रूप कर्म से वह पृथक नहीं रहता, किंतुतन्मय रहता है। ६९. दीपक अपने आपको प्रकाशित करता है यह अभिन्न कर्ता-कर्म का उदाहरण है जो निश्चय से कथनहे। ७०. सर्वज्ञ का ज्ञान स्वकीय सुख संवेदन की अपेक्षा तो निश्चय रूप है। किंतु छद्मस्थ की अपेक्षा तो दूसरों के सुख को जाननेवाला सर्वज्ञ का ज्ञान भी वास्तविक है-निश्चय है। ७१. आत्मा का निश्चय नय से एक चेतना भाव स्वभाव है, उसी को देखना, जानना, श्रद्धान करना एवं पर द्रव्य से निवृत्तहोनायह उसी के रूपान्तर है। ७२. निश्चय नय से आत्मा (द्रव्य) एक रूप है अर्थात चैतन्य रस सम्पन्न,अभेद, नित्य और निर्विकार है। ७३. जीव को देह से भिन्न, शुद्ध बुद्ध जानने वाला निश्चय नय है। निश्चय नय में पदार्थ एकरूपहै। 19

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