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व्यवहार
व्यवहार धर्म है।
८४. संसार मे कर्म निमित्त है। संसार मेकर्मबलवान है। ८५. पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा से अनित्य है। ८६. जीवादि सात तत्त्वों का श्रद्धान और ज्ञानपूर्वक
रागादिक पर भावों के परिहार रूपचारित्र की एकता को
व्यवहारमोक्षमार्ग कहते हैं। . ८७. इसमें दर्शन, ज्ञान और चारित्र तीनों ही आत्मा से पृथक
पर द्रव्यों के आश्रित है इसीलिए इसे भेद रत्नत्रय भी कहते हैं। व्यवहार प्रवृत्तिपरक है । व्यवहार मोक्ष मार्ग सराग अवस्था में होता है । व्यवहार पराश्रित है । व्यवहार साधन है। व्यवहारमोक्षमार्गप्राथमिक अवस्था है। व्यवहार नय से संसारी जीव १४ मर्गणा और १४ गुण स्थानों की अपेक्ष १४-१४ प्रकार के होते है।
८८.
जब चेतन हिलोरेंले . जब चेतन हिलोरें ले चेतन मन जागे । मोह धूजत है विनशत मिथ्या भ्रम भागे॥ उर तत्व ज्ञान की ज्योति निर्मल प्रगट हुई। विपरीत मान्यता पूर्ण अब तो विघट हुई।
चेतन कैसे भाव निज हित में लागे । निज अनुभव रस के गीत सुन सुन हर्षाए। उर साम्य भाव की प्रीत ये प्रति पल पाए। शिवपथ की लगी होड़ ये सबसे आगे ॥
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