Book Title: Nischay Vyavahar
Author(s): Bharat Pavaiya
Publisher: Bharat Pavaiya

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Page 25
________________ " " " णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धार्ण, णमो आयरियाणं, णमो उवझायाणं, णमो लोए, सव्व साहूणं । मोक्ष के नव मूल त्रैकाल्यं, द्रव्य - षटकं नव पद सहितं, जीव षटकाय लेश्याः । पंञ्चान्ये चास्तिकाया,व्रत-समिति-गति-ज्ञान-चारित्रभेदाः॥ इत्येतन्मोक्ष मूलं त्रिभुवन महितै : प्रोक्त मर्हद भिरीशे : । प्रत्येति श्रद्धधाति स्पृशति च मति मान यः सवै शुद्ध दृष्टि : ॥ - तत्त्वार्थसूत्र __(आचार्य उमास्वामी/गृद्ध पिच्छ) अर्थः- तीन लोक के ज्ञाता भगवान ऐसे कहते हैं कि जो इनको जानता है, श्रद्धा करता है और आचरण करता है वह बुद्धिमान शुद्ध दृष्टि है। इस एक श्लोक में इतना दम है कि जीवको इसका भाव भाषण होने पर केवल ज्ञान हो सकता है जो मोक्ष के इन तत्त्वों का ज्ञान करता है, श्रद्धा करता है, आचरण करता है वह शुद्ध दृष्टि है, मोक्ष मार्गी है, मात्र बातें करनेवाला नहीं, भाव भाषण की कीमत है और भाव भाषण बिनाआचरण के तीन काल में भी नहीं हो सकता। भावार्थ : १.तीन काल :- १. भूतकाल २. वर्तमान काल ३. भविष्य काल २.छह द्रव्य:- १. जीव २. पुद्गल ३. धर्म ४. अधर्म ५. आकाश६.काल ३.नवपदार्थ :- १.जीव २. अजीव ३. आश्रव ४. बंध ५. संवर ६.निर्जरा ७.मोक्ष ८.पुण्य ९. पाप ४.षटकायजीव:- १. पृथ्वीकाय २. जलकाय ३. 25

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