Book Title: Nischay Vyavahar Author(s): Bharat Pavaiya Publisher: Bharat Pavaiya View full book textPage 2
________________ و نه سه व्यवहार नय की उपयोगिताः जैन दर्शन के विषय में विप्रतिपत्ति (विपरीत निश्चय का नाम) तथा संशय के दूर करने के लिए। वस्तु के स्वरूप के सम्बन्ध में कोई विरुद्ध प्रतिपादन करता हो तो उसको हटाने के लिए। अपने को संशय होवे तो उसका विचार करके निर्णय करने के लिए अथवा विशेष ज्ञान की प्राप्ति अर्थ विचार करने के लिए और गुरू शिष्य को समझने और समझाने की पद्धति के लिए। उत्तम साधु का लक्षण शरीर में ममता का अभाव, गुरू में नम्रता, निरंतर शास्त्र का अभ्यास, चारित्र की निर्मलता, मोह की उपशमता, संसार से उदासीनता, अन्तर तथा बहिरंग परिग्रह का त्याग, धर्मज्ञता, और सज्जनता यह उत्तम साधु का लक्षण है और यह लक्षण उनके संसार का विच्छेद करने वाला है। ४. संचिता भव वासना संचिता भव वासना का अंत करना चाहिये । अब कषायी भाव को संपूर्ण हरना चाहिये ॥ जानकर सामान्य छह गुण ध्यान अपना कीजिये। चार जो कि अभाव है उनको हृदय में लीजिये ॥ शुद्ध षटकारक सदा ही प्राप्त करना चाहिये । संग सामग्री यही शिवमार्ग पर लेकर चलो | ज्ञान की ही भावना ले कर्म कालुषता दलो । अब हमें सिद्धत्व की ही प्राप्ति करना चाहिये ॥ MPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 ... 32