Book Title: Nischay Vyavahar Author(s): Bharat Pavaiya Publisher: Bharat Pavaiya View full book textPage 3
________________ निश्चय १. निश्चय नय अर्थात द्रव्यार्थिक नय। २. निश्चय से तोशुद्धात्मा का ही स्तवन कियाजाता है। ३. शुद्ध नय भूतार्थ है क्योंकि वह समता को अपनाकर . एकत्व को लाता है। समता को अपनाकर ही सम्यग्दृष्टि देखनेवाला होता है। ४. सातवेंगुणस्थान से आगे निश्चय आराधना होती है। ५. निर्विकल्प नय से तो अपने आप में ही आराधक भाव को स्वीकार करने रूप निर्विकल्प समाधि है। ६. निश्चय नय शुद्ध द्रव्य का कथन करने वाला है, वह परम शुद्धात्मा की भावना में लगे हुए पुरुषों के द्वारा अंगीकार करने योग्य है। ७. शुद्ध निश्चय नय शुद्ध द्रव्य का कथन करने वाला है, वह परम शुद्धात्मा की भावना में लगे हुए पुरुषों के द्वारा अंगीकार करने योग्य है। निश्चय नय से आत्मा जिस समय जैसे शुद्ध या अशुद्ध भावों को उपजाता है उस समय उस भाव का कर्ता होता है। शुद्ध निश्चय नय से जीव के रागादि और वर्णादि ऐसे दोनों भाव नहीं है। १०. जो भाव श्रुतरूप स्वसंवेदन ज्ञान के द्वारा केवल अपनी शुद्ध आत्मा को जानता है वह निश्चय श्रुत केवली होता है। (नियमसार गाथा १६९). ११. जो भूतार्थ निश्चय नय को जानता हुआ तीन काल में होने वाले पर द्रव्य संबंधी मिथ्या विकल्प को नहीं करता है। वह मोह भाव रहित सम्यग्दृष्टि, अन्तरात्मा .Page Navigation
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