Book Title: Nischay Vyavahar
Author(s): Bharat Pavaiya
Publisher: Bharat Pavaiya

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Page 5
________________ -IN SAR निश्चय ज्ञानी होता है। अर्थात भेदाभेद रत्नत्रय की भावना में निरत रहता है। १२. निश्चय नय (जो तादात्म्य संबंध को ही स्वीकार करता है) से जीव और देह किसी काल में भी एक नहीं है, भिन्न भिन्न है। १३. देह का स्तवनकरने पर व्यवहार से उनकी आत्मा का स्तवन हो जाता है किंतु निश्चय से नहीं। निश्चय नय में तो जब केवली के ज्ञानादि गुणों का स्तवन करता है,तभी केवली भगवान का स्तवन समझा जाता है। १४. वर्ण, गंध, रस, स्पर्श और रूप तथा संस्थान और संहनन ये जीव (आत्मा) के स्वभाव नहीं है। राग, द्वेष, मोह, मिथ्यात्वादि प्रत्यय तथा कर्म, नो कर्म ये जीव (आत्मा) के स्वभाव नहीं है । वर्ग,वर्गणा, स्पर्धक, अध्यात्म स्थान, अनुभाग स्थान,ये भीजीव के स्वभाव नहीं है। कोई भी योग स्थान, बंध स्थान, उदयस्थान और मार्गणास्थान ये सब जीव के स्वभाव नहीं है स्थिति बंध स्थान, संक्लेस स्थान, विशुद्धि स्थान, संयम लब्धिस्थान तथा जीव स्थान और गुण स्थान ये सब जीव के स्वभाव नहीं है, एवं शुद्धानुभूति से भिन्नता रखनेवाले है। ये सब तो निश्चय नय से तो जीवके नहीं हैं। निश्चय नय तो मूलद्रव्य को लक्ष में लेकर स्वभाव का ही कथन करनेवाला है, इसलिए निश्चय नय की दृष्टि में वर्णादिकभावजीवके नहीं है क्योंकि सिद्ध अवस्था में ये (वर्ण-गुणस्थान आदि) नहीं होते। यह सब विवक्षा भेद से है, स्याद्वाद में इसका कोई विरोध नहीं

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