Book Title: Navkar Mahamantra Vaigyanik Anveshan
Author(s): Ravindra Jain, Kusum Jain
Publisher: Keladevi Sumtiprasad Trust

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Page 35
________________ मन्त्र और मन्त्रविज्ञान / 31 महामन्त्र जहां विशुद्ध विश्वास का विषय रहा है, वहां आज वह विज्ञान की कसौटी पर भी पूरी तरह चौकस उतरा है। उसकी भाषा, उसकी अर्थवत्ता, उसकी भावसत्ता और उसकी ध्वन्यात्मकता को विधिवत् समझकर उसमे दीक्षित होना अधिकाधिक श्रेयस्कर है । पूर्ण तादात्म्य की अवस्था में मौन की महत्ता सुविदित ही है। एक महान् व्यक्ति के मौन में सैकडो व्याख्यानों की शक्ति होती है । अतः मन्त्र की मच्ची आराधना उसके मनन में है । चित्त की पूर्ण विशुद्धता के साथ किया गया मनन और भाव- निमज्जन मन्त्र विज्ञान की कुजी है । मन्त्र धर्म का बीज है। बीज में वृक्ष के दर्शन करने की क्षमता नर जन्म की समग्र सार्थकता है धम्मो मंगल मुक्तिकण्ठ, अहिंसा संजमो तवो । देवा वितं नमस्सन्ति, जस्स धम्मे सया मणो ॥ धर्म उत्कृष्ट मंगल है, यह अहिंसा, सयम और तप रूप है। जिस मानव का मन इस धर्म मे सदा लीन है, उसे देवता भी नमस्कार करते है । मन्त्र को शब्द और ध्वनि के स्तर पर वैज्ञानिक प्रक्रिया से भी समझा जा सकता है अतः मन्त्र विज्ञान को शब्द विज्ञान ही समझना चाहिए। मानव शरीर का निर्माण विभिन्न तत्त्वों से हुआ है । उसमें दो चीजें काम कर रही हैं। सूर्य-शक्ति से हमारे अन्दर विद्युत शक्ति काम कर रही है इसी प्रकार दूसरा सम्बन्ध है सोमरस प्रदाता चन्द्रमा से। इससे हमारा मॅग्नेटिक करेण्ट काम कर रहा है। इस मैग्नेटिक करेण्ट की सहायता से मानव के शरीर और मास-पेशियों तक पहुचा जा सकता है । किन्तु मन की अनन्त गहराई और द्रव्य का शक्ति- बीज इस करेण्ट की पकड से परे है। इसके लिए हमारे प्राचीन ऋषियो, मुनियो और महात्माओ ने दिव्य शक्ति को आविष्कृत किया। यह दिव्य शक्ति दिव्य कर्ण है । इससे हम सामान्य मन को सुन सकते हैं और सुना भी सकते है । जिस प्रकार समुद्र में एक केबिल डालकर एकदूसरे के सवाद को दूर तक पहुचाया जा सका और बाद मे इसी से तार का और फिर बेतार के तार का मार्ग भी आविष्कृत हुआ । आज तो आप चन्द्रलोक तक अपनी बात प्रेषित कर सकते हैं, बात प्राप्त कर सकते हैं । अमेरिका आदि में एक बहुत बड़ा सेटलाइट स्थिर किया

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