Book Title: Navkar Mahamantra Vaigyanik Anveshan
Author(s): Ravindra Jain, Kusum Jain
Publisher: Keladevi Sumtiprasad Trust

View full book text
Previous | Next

Page 55
________________ मन्त्र और मातृकाएं 51 tra और मातृका शक्ति : मन्त्र के सन्दर्भ में जब हम मातृका विद्या को समझना चाहते हैं नो हमें यह बात ध्यान में रखनी होगी कि मातृका विद्या में केवल eafrat एव वर्गों का उच्चारण या आकृति ही सम्मिलित नहीं है वल्कि उन ध्वनियों का मन, शरीर और जगत पर पड़ने वाला प्रभाव भी सम्मिलित है । इसे दूसरे शब्दों में यो कहा जा सकता है कि मातृका विद्या के दो आयाम है- ज्ञानात्मक और क्रियात्मक । ज्ञानात्मक पहलू उच्चारण किये जाने वाले वर्णों का एवं उन वर्णों से बने हुए शब्दों के अर्थ का संकेत देता है, तो क्रियात्मक पहलू उन शब्दों के उच्चारण से होने वाले प्रभाव को और शक्ति के परिवर्तन को सूचित करता है । उदाहरण के रूप मे 'राम' और अर्ह' इन शब्दो को लिया जा सकता है । जब हम राम शब्द का उच्चारण करते है तो इस उच्चारण से हमारे सामने भूतकाल मे हुए पुरुषोत्तम राम की मानसिक प्रतिकृति उभर आती है । उनके व्यक्तित्व की झाकी स्पष्ट हो जाती है । परन्तु साथ ही इस उच्चारण मे एक गूढ़ तत्त्व भी है। राम शब्द के उच्चारण मे र् +आ, म् +अ इतने वर्णों का उच्चारण निहित है । 'र' का उच्चारण करते समय हमारी जिह्वा मूर्धा को छूती है । मूर्धा को छुए विना 'र' का उच्चारण नही हो सकता और मूर्धा को परम तत्व का स्थान माना गया है । 'र' के बाद हम 'अ' का उच्चारण करते है । यह कण्ठ ध्वनि है । कठ को जीव का स्थान माना गया है । अत: 'र' के पूर्ण उच्चारण से यह स्पष्ट हो गया कि परमात्मतत्त्व के साथ जीव का संयोग होता है। दोनों का मिलन होता है। इसके बाद 'म' के उच्चारण ओष्ठ युगल का अनिवार्य सयोग होता है । 'म' के उच्चारण में शक्ति अन्दर से ऊपर की ओर उठती है और आकाश की महातरगो मे सम्मिलित हो जाती है । अव 'राम' शब्द के पूर्ण उच्चारण का अर्थ हुआ कि 'रा' के उच्चारण में जीवात्मा और परमात्मा का सयोग होता है और 'म' के उच्चारण से जीवात्मा परमात्मा में लीन हो जाती हैउसमे उतरने लगती है । स्पष्ट है आत्मा ही परम निर्विकार अवस्था को प्राप्त कर परम + आत्मा = परमात्मा हो जाती है । अपनी ही प्रसुप्त, दमित एवं आच्छादित आत्मा की विदेशी तत्वो से मुक्ति धर्म की सबसे बड़ी कसौटी है ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165