Book Title: Navkar Mahamantra Vaigyanik Anveshan
Author(s): Ravindra Jain, Kusum Jain
Publisher: Keladevi Sumtiprasad Trust

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Page 145
________________ णमोकार मन्त्र का माहात्म्य एवं प्रभाव | 141 मन्त्र बीज है और समस्त जैनागम वृक्ष-रूप हैं। कारण पहले होता है और कार्य से छोटा होता है । यह मन्त्र उपादान कारण है। प्राय. समस्त जैन शास्त्रों के प्रारम्भ मे मगलाचरण के रूप में प्रत्यक्षत णमोकार महामन्त्र को उद्धत कर आचार्यों ने उसकी लोकोत्तर महत्ता को स्वीकार किया है, अथवा देव, शास्त्र और गुरु के नमन द्वारा परोक्ष रूप से उक्त तथ्य को अपनाया है। यहा कुछ प्रसिद्ध उद्धरणो को प्रस्तुत करना पर्याप्त होगा। इस महामन्त्र की महिमा और उपकारकता पर यह प्रसिद्ध पत्र द्रष्टव्य है एसो पंच णमोकारो, सम्वपापप्पणासणो। मंगलाणं च सम्वेसि, पढ़मं हवा मंगलं ॥ अर्थात् यह पंच नमस्कार-मन्त्र समस्त पापो का नाशक है, समस्त मगलो में पहला मंगल है, इस नमस्कार मन्त्र के पाठ से समस्त मगल होगे। वास्तव मे मल महामन्त्र तो पचपरमेष्ठियों के नमन से सम्बन्धित पाच पद ही हैं। यह पद्य तो उस महामन्त्र का मंगलपाठ बा महिमा-गान है। धीरे धीरे भक्तो मे यह पच भी णमोकार मन्त्र का अग सा बन गया और इसके आधार पर महामन्त्र को नवकार मन्त्र अर्थात नौ पदो वाला मन्त्र भी कहा जाता है। __इसी महत्त्वांकन की परम्परा मे मगलपाठ का और भी विस्तार हुमा है। चार मंगल, चार लोकोत्तर और वार का ही शरण का मगलपाठ होता ही है। ये चार हैं-अरिहन्त, सिद्ध, साधु और केवलीप्रणीत धर्म। इसमे आचार्य और उपाध्याय को धर्म प्रवर्तक प्रचारक वर्ग के अन्तर्गत स्वीकार कर लिया गया है अतः खुलासा उल्लेख नही है। कभी-कभी अल्पज्ञता और अदूरदर्शिता के कारण ऐसा भी कतिपय लोगों को भ्रम होता है कि आचार्य और उपाध्याय को ससारी समझकर छोड दिया गया है। वास्तव मे ये दो परमेष्ठी धर्म की जड जैसी महत्ता रखते हैं, इन्हें कैसे छोड़ा जा सकता है। पाठ द्रष्टव्य है चार-मंगल : पसारि मंगल, अरिहंता मंगल, सिनामंगलं : साहू मंगलं, केवली पण्णत्तो धम्मो मंगलं ।।

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