Book Title: Navkar Mahamantra Vaigyanik Anveshan
Author(s): Ravindra Jain, Kusum Jain
Publisher: Keladevi Sumtiprasad Trust

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Page 160
________________ 156 / महामन्त्र णमोकार एक वैज्ञानिक अन्वेषण दूसरे अभी दो-तीन माह का जिकर है कि जब मेरी बिरादरी बालो को मालूम हुआ कि मैं जैन मत पालने लगा हूं, तो उन्होंने एक भाको, उसमे मुझे बुलाया गया। मै जखोरा से झासी जाकर सभा में शामिल हुआ। हर एक ने अपनी-अपनी राय के अनुसार बहुत कुछ कहा-सुना और बहुत से सवाल पैदा किए, जिनका कि मैं जवाब भी देता गया । बहुत से महाशयो ने यह भी कहा कि ऐसे आदमी को मार डालना ठीक है । अपने धर्म से दूसरे धर्म में, यह न जाने पाए। अन्त मे सब चले गए। मैं भी अपने घर आ गया । जब शाम का समय हुआयानी सूर्य अस्त होने लगा तो मैंने सामायिक करना आरम्भ किया और जब सामायिक से निश्चिन्त होकर आखे खोली तो देखता हू कि एक बड़ा साप मेरे आस-पास चक्कर लगा रहा है और दरवाजे पर एक बर्तन रखा हुआ मिला, जिससे मालूम हुआ कि कोई इसमे बन्द करके छोड गया है । छोडने वाले की नीयत एक मात्र मुझे हानि पहुचाने की थी । लेकिन उस साप ने मुझे नुकसान नही पहुचाया । मै वहा से डरकर आया और लोगो से पूछा कि यह काम किसने किया है, परन्तु कोई पता न लगा। दूसरे दिन जब सामायिक के समय पडोसी के बच्चे को साप ने डस लिया तब वह रोया और कहने लगा कि हाय मैंने बुरा किया कि दूसरे के वास्ते चार आने देकर जो साप लाया था, उसने मेरे बच्चे को काट लिया। बच्चा मर गया । पन्द्रह दिन बाद वह आदमी भी मर गया | देखिए सामायिक और णमोकार मन्त्र कितना जबरदस्त स्तम्भ है कि आगे आया हुआ काल भी प्रेम का बर्ताव करता हुआ चला गया ।" 'तीर्थंकर' पत्रिका के णमोकार मन्त्र विशेषांक - 2, जनवरी 1981 से कतिपय उद्धरण प्रस्तुत हैं । इन उद्धरणो से कुछ प्रामाणिक साधुओ, मुनियो, विद्वानो एव गृहस्थो की प्रखर स्वानुभूतियो की जानकारी मिलती है- 1 प्यास शान्त हुई - स्व० गणेश प्रसाद जी वर्णी जब दूसरी बार सम्मेद शिखर की यात्रा पर गए, तब परिक्रमा करते समय उन्हे वडी जोर को प्यास लगी। उनका चलना मुश्किल हो गया। वे णमोकार मन्त्र का स्मरण करते हुए भगवान को उलाहना देने लगे कि प्रभो,

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