Book Title: Navkar Mahamantra Vaigyanik Anveshan
Author(s): Ravindra Jain, Kusum Jain
Publisher: Keladevi Sumtiprasad Trust

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Page 34
________________ 30 / महामन्त्र णमोकार एक वैज्ञानिक अन्वेषण हमारे आचार्यो, कवियो और महान् पुरुषो ने वाणी की महिमा का बहुविध गान किया है कबीर - ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोय । औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होय ॥ तुलसी- तुलसी मीठे वचन ते सुख उपजत चहुं ओर । वशीकरण इक मन्त्र है, तज दे वचन कठोर ॥ शब्द का दुखात्मक प्रभाव इतना अधिक होता है कि आदमी जीते जी मर जाता है, और शब्द के सुखात्मक प्रभाव मे आदमी मरता हुआ भी जी उठता है । शब्द ब्रह्म की महिमा अपार है। कहा है कि तलवार का घाव भर सकता है लेकिन वाग्बाण का कभी नही । स्पष्ट है कि वाणी मे अमृत और विप दोनो है । समस्त विश्व पर ध्वनि का प्रभाव देखा जा सकता है। वाणी के घातक प्रभाव पर एक प्रसग प्रस्तुत है एक बार लदन की एक प्रयोगशाला मे वाणी और मनोविज्ञान के दबाव पर एक प्रयोग किया गया। एक व्यक्ति के शरीर के पूरे खून को क्रय किया गया । मूल्य यह था कि उसके परिवार का पूरा भरण-पोषण सरकार करेगी । उस व्यक्ति को लिटा दिया गया और पीछे एक नली द्वारा खून को बूंद-बूंद करके निकालने का काम शुरू हुआ। जब काफी समय हो गया तो डाक्टरो ने कहा कि इतने खून के निकलने के बाद तो इस व्यक्ति को मर ही जाना चाहिए था, आश्चर्य है, शायद दोचार मिनट में मर जाएगा। ये शब्द सुनते ही वह आदमी तुरन्त मर गया। वास्तव में उसके शरीर से रक्त की एक बूद भी नही निकाली गयी थी। बस उसके पीछे से पानी की बूंदे गिरायी जा रही थी । यह मन पर वाणी का और मानसिकता का दवाव था । मन्त्र की सम्पूर्ण ध्वन्यात्मकता शरीर के कण-कण मे व्याप्त होकर आत्मा के भीतरी लोक से सम्पर्क करती है और उसे उसकी विशुद्धता का लोकोत्तर दर्शन कराती है। यह बात सुस्पष्ट है कि मन्त्र विज्ञान मे आस्था, परम्परा और इतिहास की आत्मा मे प्रवेश करके उसे ज्ञान और विवेक के प्रत्यक्ष प्रयोग के धरातल पर लाकर स्थिरीकरण कराया जाता है। वैज्ञानिक धरातल पर परीक्षित करके ही कुछ बुद्धि जीवियों में आत्मा का उदय होता है। जैन धर्म मे विश्रुत पंच नमस्कार

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