Book Title: Navkar Mahamantra
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Jina Bharati

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Page 6
________________ Recentered00090908 जिनशासन रत्न स्वामी ऋषभदासजी संक्षिप्त परिचय : स्वामी ऋषभदासजी उस पुण्य पुरुष का नाम है, जिन्होंने ४० वर्षों से भी ज्यादा समय तक जिन शासन के विविध अंगो की सेवा की। वे सिर्फ एक व्यक्ति ही नहीं थे, पर चलतीफिरती संस्था थे। मद्रास (चेन्नई) उनकी कर्म स्थली थी। वे एक सफल वक्ता, लेखक, साधक, भक्त, समाज सुधारक, चिन्तक, जीवदया प्रेमी, परोपकारी और समन्वयवादी थे। उनके नाम व काम की सुगन्ध दूर-दूर तक देश के कोने-कोने में फैल गई। इस महापुरुष को सब लोग 'स्वामीजी' के सम्मानसूचक नाम से बुलाते थे। उनका जन्म राजस्थान के सिरोही जिले के शिवगंज नामक शहर में अनुमानत: वि. सं. १९६० सन् १९०३ में हुआ था। इस तेजस्वी आत्मा का जन्म प्राग्वट (पोरवाल) जाति के लांब गौत्र चौहान वंश में शाह भबुतमलजी के पुत्र रत्न के रूप में हुआ। बालक का नाम रिखबदास रखा गया। वे यथा नाम तथा गुण के अनुसार श्री ऋषभदेव प्रभु के सच्चे दास बन गए। युवावस्था प्राप्त होने पर उनका लग्न श्रीमती रंबाबाई के साथ हुआ। उनके एक पुत्री हुई। उसका नाम शांतिबाई रखा गया। उन्होंने ३० वर्ष की उम्र में श्री बामणवाडजी महातीर्थ में आयोजित अखिल भारतीय पोरवाल महा सम्मेलन में सक्रिय भाग लिया था। उनको जैन धर्म के तत्वज्ञान, साहित्य व इतिहास का अच्छा ज्ञान था। उनका प्रभावशाली व्यक्तित्व हर किसी को अपनी तरफ आकर्षित करता था। उन्होंने पूरा जीवन जिन शासन की सेवा में अर्पित कर दिया था। उन्होंने श्री केशरवाड़ी (पुडल) तीर्थ का पूर्ण विकास श्री संघ के सहयोग से किया। उसकी उन्नति में उनका प्रशंसनीय व अनुमोदनीय योगदान रहा। पत्नी के देहान्त के बाद निवृत्ति व प्रवृत्तिमय जीवन बहुत वर्षों तक इसी तीर्थ पर बिताया था। उनका समाधि मरण ७१ वर्ष की उम्र में इस तीर्थ स्थान में दिनांक २१.६.१९७४ के दिन प्रात: ४.३० बजे हुआ था। संत समागमः युवावस्था में आप योगीराज श्री शांतिसूरिजी के समागम में आए। आबूजी में उनका कुछ समय गुरुदेव की सेवा और जप साधना में बीता। जैन धर्म व अहिन्सा के प्रचार व प्रसार की भावना ने वहाँ साकार रूप लिया। श्री बामणवाडजी तीर्थ पर आचार्य श्री वल्लभसूरिजी के RECERecenew SeelORSEEN

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