Book Title: Navkar Mahamantra
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Jina Bharati

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Page 34
________________ 36350 1 005000000 CECECECCGe सहनानंदघन की आत्मानुभूति प्रस्तुत की गई है। प्रो. टोलिया का समग्र परिवार इस कार्य के पीछे लगा हुआ है और मिशनरी के उत्साह से काम करता है। उनकी सुपुत्री ने 'why vegetarianism ?' यह पुस्तिका प्रकट की है। बहन वंदना टोलिया लिखित इस पुस्तिका में वैज्ञानिक पद्धति से शाकाहार का महत्व समझाया गया है। उनका लक्ष्य शाकाहार के महत्व के द्वारा अहिंसा का मूल्य समझाने का है। समाज में दिन-प्रतिदिन फैल रही हिंसावृत्ति को रोकने के लिये किन किन उपायों को प्रयोग में लाने चाहिये उसका विवरण भी इस पुस्तिका में मिलता है। उनकी दूसरी सुपुत्री पारुल के विषय में प्रकाशित पुस्तक 'Profiles of Parul' देखने योग्य है। प्रो. टोलिया की इस प्रतिभाशाली पुत्री पारूल का जन्म 31 दिसम्बर 1961 के दिन अमरेली में हुआ था। पारुल का शैशव, उसकी विविध बुद्धिशक्तियों का विकास, कला और धर्म की ओर की अभिमुखता, संगीत और पत्रकारिता के क्षेत्र में उसकी सिद्धियाँ, इत्यादि का उल्लेख इस पुस्तक में मिलता है। पारुल एक उच्च आत्मा के रूप में सर्वत्र सुगंध प्रसारित कर गई। 28 अगस्त 1988 के दिन बेंगलोर में रास्ता पार करते हुए सृजित दुर्घटना में उसकी असमय करुण मृत्यु हुई। पुस्तक में उसके जीवन की तवारिख और अंजलि लेख दिये गये हैं। उनमें पंडित रविशंकर की और श्री कान्तिलाल परीख की 'Parul - A Serene Soul' स्वर्गस्थ की कला और धर्म के क्षेत्रों की संप्राप्तियों का सुंदर आलेख प्रस्तुत करते हैं। निकटवर्ती समग्र सृष्टि को पारुल सात्विक स्नेह के आश्लेष में बांध लेती थी । न केवल मुनष्यों के प्रति, अपितु पशु-पक्षी सहित समग्र सृष्टि के प्रति उसका समभाव और स्नेह विस्तारित हुए थे। उसका चेतोविस्तार विरल कहा जायेगा । समग्र पुस्तक में से पारुल की आत्मा की जो तस्वीर उभरती है वह आदर उत्पन्न करानेवाली है। काल की गति ऐसी कि यह पुष्प पूर्ण रुप से खिलता रहा था, तब ही वह मुरझा गया। पुस्तक में दी गई तस्वीरें एक व्यक्ति के 27 वर्ष के आयुष्य को और उसकी प्रगति को तादृश खड़ी करती हैं। पुस्तिका के पठन के पश्चात् पाठक की आंखें भी आंसुओं से भीग जाती हैं। प्रभु इस उदात्त आत्मा को चिर शांति प्रदान करो। 'वर्धमान भारती' गुजरात से दूर रहते हुए भी संस्कार प्रसार का ही कार्य कर रही है वह समाजोपयोगी और लोकोपकारक होकर अभिनन्दनीय है। 'त्रिवेणी' लोकसत्ता- जनसत्ता, अहमदाबाद, 22-03-1992 इसीका सात भाषाओं में श्रीमद् राजचन्द्रजी कृत 'सप्तभाषी आत्मसिद्धि' रुप संपादित- प्रकाशित GECE 24 JIJIN boos डॉ. रमणलाल जोशी (सम्पादक, 'उद्देश' )

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