Book Title: Navkar Mahamantra
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Jina Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ वृत्तियों को उधार लेती है जो कि भ्रम, आसक्ति एवं द्वेष के माध्यम से प्राप्त होती हैं जिन्हें तत्त्वज्ञान की भाषा में मोह, राग, द्वेष कहा जाता है, जो तकनीकी दृष्टि से मन का आकर्षण और विकर्षण (अपकर्षण) कहा जाता है। ऐसी पाबन्दी से आत्मा ने अपने आपको विकार, इच्छाएं, महत्वाकांक्षाएँ, क्रोध, मान, माया, लोभ, क्रूरता, ईर्ष्या, शत्रुता, भावुकता, आदि सभी दुर्गुणों और भ्रष्टताओं का दुष्ट निवासस्थान बना दिया है। ये दुष्ट प्रवृत्तियाँ मोहभ्रमित आत्मा को अनीच्छनीय एवं नापसंदगीपूर्ण ऐसे निर्वासन के भौतिक अस्तित्व में सहन करने बाध्य कर देती है, कि जो दारिद्रय, चिंता, दुःख, वियोग, कष्ट, पीड़ा, आपदा, विनाश, रोग, मृत्यु और जीवन के ऐसे असह्य विपर्यासों से भरा हुआ हो। प्रकृति सदा रात दिन यह संघर्ष करती है-आत्मा को प्रेरणा देने अपने ऐसे सारे दुर्गुणों को नष्ट करने और हमेशा शाश्वत रूप से अपने दीर्घजीवी, मौलिक लाक्षणिकताओं में लीन रहने की, स्वयं के प्रमाणभूत मार्गदर्शकों के द्वारा आत्मा के संरक्षक एवं दुर्गरक्षक के रूप में सेवारत रहने की, विश्व व्यवस्था के मार्गदर्शन एवं दिव्यानुग्रहपूर्ण महासमर्थ कानून के अनुसार प्रेरणा देने की और आत्मा को जीवन मुक्त भूमिका या जीवन का 'सार-सर्वस्व' कहा जाये ऐसे आत्मा के आनंद और मुक्त स्वरूप में लीन बने रहने में अत्यधिक रूप से सहाय पोषण करने की। अब समस्या है - प्रकृतिमैया की ऐसी कृपा को किस प्रकार पाया जाये और किस प्रकार ऐसे मोह भ्रम के मूल कारण को नष्ट किया जाये जो कि द्वेष और आकर्षण (राग) से जन्मा हो और किस प्रकार सारे दुर्गुणों और जीवन के असहनीय ऐसे सतत परिवर्तन का अंत किया जाय? अपने निजी प्रयोग और अनुभव पर आधारित गहन संशोधन एवं अवलोकन के बाद आत्मा के चैतन्य विज्ञान (योग) के महामना मांधाता महान शोधकजन (The Master minds) यह सलाह परामर्श देते हैं कि भक्तिमय आत्मा का ध्वन्यात्मक उच्चारण ऐसा, पवित्र आत्माओं का पूज्यभाव एवं प्रणामपूर्ण ध्वनि ऐसा नमस्कार मंत्र, उसके चमत्कार पूर्ण और विराट प्रभावों के द्वारा, पूर्व उपर्युक्त असह्य विपर्यासों-दुःखों-कष्टों-आपदाओं को आध्यात्मिक चैतन्यविज्ञान के सिद्धांतों के अनुसार, दूर कर देने में अद्भुत आश्चर्यमय कार्यसिद्धि करता है - सभी विपदाओं को विस्मयजनक ढंग से दूर कर देने में सक्षम सिद्ध होता है। कारण? कारण यह कि विश्व में ध्वनि, नाद से अधिक महान कोई अन्य बड़ी शक्ति नहीं है। (कृपया ध्वनि के चैतन्यविज्ञान पर लिखित डॉ. जस्टीस मुखर्जी, बार एट लॉ, के एवं ध्वनि विषयक चैतन्य विज्ञान के अन्य अधिकृत प्रमाणभूत ग्रंथों का अनुसंधान-संदर्भ देखें। अभी 1970 में मद्रास में आयोजित विश्व मेले (World Fair) में यह प्रयोग द्वारा सिद्ध किया गया था। एक जर्मन वैज्ञानिक ने संगीत वाद्य के संयोग के साथ सहयोगयुक्त ध्वनि पर पानी को ROSCOOKS 5 GOS09080SC

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36