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आज्ञानुसार वर्तन करते हैं और जिन्होंने आर्हतों-जिनों द्वारा प्ररूपित अहिंसा, समतासमदृष्टि और तपस्या के उमदा मिशन को परिपूर्ण करने हेतु अपने जीवन समर्पित कर दिये हैं
और जो आनंद एवं सौंदर्य के शाश्वत निवास स्थान ऐसे लोक के सर्वोपरि अग्र प्रदेशों में स्थित/बसते सिद्धों की मुक्तात्माओं की सिद्धदशा का सतत ध्यान धरते हैं।
इन पांच नमस्कारों के बाद की शेष चार पंक्ति की "चूलिका'' इस सारी बात को संक्षेप में प्रस्तुत करती है और यह दर्शाती है कि ये पाँच नमस्कार विविध प्रकार के पापों-कुकर्मों जैसे कि क्रूरता-हिंसा, असत्य, चोरी, व्यभिचार, राग, क्रोध, मान, माया-कपट, लोभ, प्रलोभन, घृणा, झगड़ा-फिसाद, निंदा, दोषारोपण, दंभ, मिथ्यात्व-मिथ्या श्रद्धान् इत्यादि का नाश करते हैं और आत्मा के ऊर्वीकरण , पवित्रता और पूर्णत्व हेतु भ्रातृभाव, सत्य, प्रामाणिकता, ब्रह्मचर्य, औदार्य, क्षमा, मानवता, सदाचरण, संतोष, अनासक्ति, परोपकार, कृतज्ञता, अनुमोदक-प्रकृति, सरलता, मन:स्थैर्य, पूज्यभाव, सौजन्य और समदृष्टि सम्यक्त्व जैसे मंगल तत्त्वों को प्रोत्साहन देते हैं।
कुदरत का राज्य सारे ही विश्व को व्यवस्थित, वैज्ञानिक ढंग से और गणितिक कानूनों की नींव पर चलाने हेतु है यह बात निर्विवाद रूप से स्वीकृत हुई है। इस प्रकार वह भूत, वर्तमान और भविष्य की सभी सरकारों से बड़ी सरकार है और वह विश्व के सर्व सचेतनअचेतन जीवों के संचालन-नियमन के सूक्ष्म निरीक्षण के द्वारा समझायी जा सकती है। इसलिये जब मानवसृजित सरकार अपने शहनशाहों, राजाओं, मंत्रियों, अध्यक्षों, जैसे प्रतिनिधिओं की मान्यता हेतु सर्वप्रकार की शाही सुविधा और साधनसंपदा की पूर्ति करती है, तब कुदरत की यह समर्थ सरकार, अत्यंत अधिकृत ऐसे आहतों, जिनों और विजेताओं को कि जिन्होंने प्रकृति, शांति और पूर्णता के उमदा लक्ष्य की परिपूर्ति हेतु वैश्विक नियम को बोधित करने, आचरण करने हेतु अपनी सारी ही सम्भव सेवाएँ अर्पित की हैं, अपनी दिव्य संपदा का प्रदान और पूर्ति करने के अपने कर्तव्य से कैसे चुक सकती है?
इसलिए आर्हतों के जीवन में घटनेवाले नैसर्गिक चमत्कारपूर्ण प्रसंगों और घटनाओं का आपको एक ख्याल देने के लिये सभी पवित्र और अधिकृत शास्त्रों में विस्तार से प्रतिपादित वर्णनों का थोड़ा-सा अंश प्रस्तुत करूंगा।
जब आर्हतों की विश्वविश्रुत आत्मा इस पार्थिव विश्व में अपनी माताओं के पवित्र गर्भ में प्रवेश करने के द्वारा जन्म लेती है, तब उन माताओं को पवित्र धर्म ग्रंथ शास्त्रों में जिनका विस्तार से विशाल विराट अर्थ सूचित किया गया है ऐसे मंगलमय स्वप्नों के पूर्व दर्शन की
परिसंतृप्ति होती है । ये स्वप्न प्रकाशमय चमकता हुआ सूर्य, तेजस्वी चंद्र, इत्यादि अपनी R
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