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॥ नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः।।
|| सहजात्मस्वरूप परमगुरू|| || श्री सद्गुरुदेवाय नमः श्री वीतरागाय नमः श्री गौतम स्वामिने नमः।।
|| श्री सरस्वत्यै नमः परमकृपालुदेवाय नम: दादा दत्तगुरुदेवाय नमः।। लेखक : स्वामी श्री ऋषभदासजी 'सिद्धपुत्र' (आर.बी. प्रागवट) मद्रास
अनुवादक : प्रा. प्रतापकुमार ज. टोलिया, जैन संगीत रत्न, बेंगलोर
नवकार महामंत्र
विश्वकल्याण का मंत्रयोग मूल अंग्रेजी पुस्तिका-युनिवर्सल वेलफेयर इन्कैन्टेशन का हिन्दी रूपांतरण विश्व कल्याण का सर्वाधिक पवित्र महामंत्र
विकसित विज्ञान के इस अभूतपूर्व युग में ध्वनिशक्ति के मूलभूत सामर्थ्य के विषय में कहने की कोई भी आवश्यकता नहीं है, क्योंकि ध्वनि की एवं सर्वश्रेष्ठ ध्वनि तरंगों की अद्भुत सिद्धियाँ हम देख रहे हैं। ध्वनि यह विश्व के संवेदनशील सजग सचेत और संवेदनशीलता विहीन पदार्थों के बीच मूलभूत रूप से संवाद स्थापित करनेवाला, कडीरूप बननेवाला एक अत्यधिक शक्तिशाली माध्यम है। प्राकृतिक नियमानुसार ध्वनि की, आवाज की तरंगें प्रत्येक पदार्थ को घिरे रहती हैं और उनके लक्षण और शक्ति पर आधारित एक निश्चित प्रकार का वातावरण सृजित होता है। फलत: कई दार्शनिक परंपराओं या पद्धतियों द्वारा ध्वनि शक्ति भी प्राय: सामान्यतया उपयोग में ली जाती हैं और तांत्रिक दृष्टि से वे उन्हें 'मंत्र' अथवा 'मंत्रयोग' कहते हैं। अगर वह पद्धति पूर्वक एवं सुमधुर स्वर में उच्चारित की जाती है तो वह उनके पापों को धोने का प्रबल उपाय बनी रहती है। जैन दर्शन का रहस्यपूर्ण नवकार मंत्र निर्मित हुआ है - सारे ही करुणावंत, सुप्रतिष्ठित, एवं मुक्त सिद्धात्माओं की परमेष्ठि-माला को अंजलि, नमस्कार, वंदना, पूजाभक्ति अर्पित करने के लिये। इसलिये वह महामंत्र कहा जाता है। यह महामंत्र किसी अमुक पवित्र भूमि अथवा व्यक्ति के साथ ही सीमित या अनुबंधित नहीं है, परन्तु सर्व सुप्रतिष्ठित और दिव्य आत्माओं से आश्रित रहने के कारण वह अपने स्वरूप में 'वैश्विक' अथवा 'जागतिक' है। अत: जहाँ पर भी यह महामंत्र संनिष्ठा, श्रद्धा, भक्तिपूर्ण हृदय और मन की एकाग्रता से उच्चारित किया जाता है, वहाँ वह पवित्रता और शांति का विशेष शक्तिशाली