Book Title: Navgranthi
Author(s): Yashodevsuri
Publisher: Yashobharti Jain Prakashan Samiti
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________________ विचारविदा ए योगबिंदु ग्रन्थमध्ये पणि, नरनारकादिभाव अनंतपुद्गलपरावर्त गत्यागती कहि छई ते माटे ग्रंथानुरोधि कल्पना कीजई, पणि कल्पनानुरोधि ग्रंथकदर्थना न कीजइ // 5 // एणे करीने बादरनिगोद जीवनई अव्यवहारिया कहइ छइ ते पणि जुळू जाणवू, जे माटि निगोदभाविस्थित्यादिकालमान सूत्रिं कहिउँ छई ते सूक्ष्म बादरादि क्रमपर्यायस्पर्शई न घटई, अनई वारंवार गमनागमनि अनंतपुद्गलपरावर्त पणि संभवइ. अनंतपुद्गलिं माटई बादरनिगोदजीवनइ तथा अभव्यनइ अव्यवहारी कहिइं तो भुवनभानु प्रमुखविराधेइ सर्व जिनशासनप्रक्रिया विघटई, ते माटि ए कुयुक्ति न करवी / हवै बादरनिगोदे जीव व्यवहारिया कहिइं, तिहां ग्रंथसाखि लिखिइ छ / सर्वे जीवा व्यवहार्यव्यवहारितया द्विधा, सूक्ष्मा निगोदा एवान्त्यास्तेऽन्ये च व्यवहारिणः / इति योगशास्त्रवृत्तौ / [ ] "तत्र येऽनादिसूक्ष्मनिगोदेभ्य उद्धृत्य शेषजोवेषु उत्पद्यन्ते ते. पृथिव्यादिव्यवहार योगात् सांव्यवहारिकाः / ये पुनरनादिकालादारभ्य सूक्ष्मनिगोदेष्वेवावतिष्ठन्ते ते तथाविधव्यवहारातीतत्वादसांव्यवहारिका" इति प्रवचनसारोद्धारवृत्तौ / [ ] . गमागमादिकं लोकव्यवहारममी पुनः। कुर्वन्ति सर्वदा तेन, प्रोक्ताः सांव्यवहारिकाः॥१॥ इति लघूपमितिभवप्रपञ्चग्रन्थे / [ ] 'यदा तत्रा संव्यवहारनगरेऽभूवं तदा मम जोर्णाजोर्णामपरां गुटिकां दत्तवती केवलं सूक्ष्ममेव रूपमेकाकारं सर्वदा तत्प्रयोगेण विहितवतो ।।'-इति वृद्धोपमितभवप्रपञ्चग्रन्थे / [ ] तरेसविहा जहा-एगे सुहुमणिगोयरूवे असंववहारभेए / बारस संववहारियाय ते अ इमे पुढवि-आउ-तेउ-बाउ णिगोआ, सुहुमबायरत्तेणं दुदुमेया पत्तेयवणस्सई तसा य // समयसारसुत्ते / [सू० 13] असंव्यवहारपुरान्निष्कास्य समानीतो व्यवहारनिगोदेषु / भवभावनावृत्तौ / [ व्यवहारराशिप्रवेशत उत्कर्षेण बादरनिगोदे पृथिव्यप्तेजोवायुषु प्रत्येकं सप्ततिसागरोपमाणि तिष्ठन्ति // श्रावकदिनकृत्यवृत्तौ [ ] अववहारणिगोएसु, ताव चिट्ठति जंतुणो सम्वे / पढमं अणंतपोग्गल-परियट्टे थावरत्तण // 1 // 1. भुवनभानुकेवली चरित्रे /

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