Book Title: Navgranthi
Author(s): Yashodevsuri
Publisher: Yashobharti Jain Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 295
________________ 36 तेरकाठीयानुं स्वरूप पाम्या. तिहां एक कायर प्राणी हतो तेहना शरीरने विर्षे प्रवेश कीधो एतले ध्रुजवां मांडयौ, अरहुं परहुं जोवा मांडथौ, जे किहांई छेडी मले तो नासी जाउं / हे देव! एम्युं थयु, वली ए गुरुने तोफान सुझै छै, ने भाइयो ! तुम्ही सिद्ध थया छौ, तुमारे एतला मेल्यानो स्यो काम छै ? पोतानी भलाई देखाडी पेट गुरु भराई करे छै जुनो भाईयो! मस्तके व्यथा आवी पडी जो एहवो जाण्यु होवत तो नावत. ए गुरुए जंजालमा नांखी, मस्तक ऊपरि भुरकी मुके छई अने वीजा लोकने सूझतुं नथी जे भेळा मलीने बेसम्युं तो कोई पकडी जास्यै, इम ते प्राणी कहै. भयकाठीयाने योगे धरम करतो नासी गयो. ए भय काठीयोनो स्वरूप जाणवू // 9 // 10. रति काठीयो. वली जिमतिम करीने ए भयकाठीयाने पिण जीती धर्म सांभलवा लागो, एतले रति काठीयो आवी वलगो ते एहनो स्वरूप कहै छै :- ए गुरुनो कंठ सारो छै. केहवे मीठे स्वरई वखाण वांचे हैं, जो एहना कंठ ऊपरि तन मन धन ऊवारी नांखीइं हि आपणे निरंतर वखांणे आववो. इम प्राणीयो चिंतवें वली रागना वाह्या प्राणी घरबार छोडई, वली रागना वाह्या हरण ते हरी नीला चरे, निरमल पाणी पीतां थका हरणनई निष्कारण पारधी प्रांण लेवानें हाथने विषे वीणा लेई वनमा जइ वजाडे, तिवारे रागना वाह्या हरण मुख आगल आवी ऊभा रहइ, एतलें पारधी कान सुधी बांण ताणीने नाखई, एतलें बांण अने ते मृगनो जीव एकण साथें पुद्गल बाहिर निसरें / एहवो जगतने विर्षे गग जाणवो. वली ते प्राणी चितवई ए गुरुने पोथी सारी छई. ठवणीयो रूमाल, चाखडीयो बेसणां सारां छई, चंद्रआ सारा बांध्या छै. लोक घणा आवे छई. गुरु घणी आडकथा ल्यावे छइं. दांत घणां च(क)ढावे छई. ए वखांण अमनई घणुंज प्रिय लागे छई. इम नजरमें लावीने वखांण सांभले. पिण तत्व रहस्यनी वार्तामई चित्त ये नहीं. इम रति काठीयो धर्मरूपी यो खजानो सर्व लूटी लैजाइ. ए रति काठीयो चोर // 10 // 11. अरति काठीयो. वली रतिने पिण जीतीने सांभलवा बेठी श्री जिनवाणी. गुरू कहेवान तैयार थया. ए पिण सांभलवानो मन कयौँ. एतले मोहराजाने खबर थई. तिवारें चाकर साहमुं जोयु. एतले अरति काठीयौ ऊभो थइ बोल्यौ--महाराज ! स्यो हुकम फुरमावो छो ? तिवारै मोहराजाई कह्यौ अरे भाई ! एक मुझने मोटको दुख छै, ते तो केवली विना कोइ जांणे नहीं. एहवो उपगारी, ते पारका दुखनो भांजणहारो अरीहंत विना

Loading...

Page Navigation
1 ... 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320