Book Title: Navgranthi
Author(s): Yashodevsuri
Publisher: Yashobharti Jain Prakashan Samiti

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Page 287
________________ 28 तेरकाठीयानुं स्वरूप विना वरसात होई नहीं / ते वादल कोण, अशोक वृक्षनी छाया; ते वादल जिहां वरसात होई तिहां बगलानी पंक्ति होइं / ते बगलानी पंक्ति कोण चामर वीजाई, इते इन्द्रधनुष्य वरसाते तणाई जिहां वरसात होई तिहां इंद्रधनुष ते वांगीरूपो वरसात गाजई / गाथा-उक्तं भो भो प्रमादमवधूय भजध्वमेन___मागत्य निवृतिपुरी प्रति सार्थवाहम् / एतन्निवेदयति देव ! जगत्त्रयाय, मन्ये नदन्नभिनभः सुरदुन्दुभिस्ते // कल्याणमंदिर स्तोत्र] एहवि दुंदुभि बोली छइ / स्युं कहि छई. हे प्राणोउ ! प्रमाद म करो, देवदुंदुभि स्युं बोलई छई, जे वरसात भूइ उपर वरसई, ते वारे भूई निलास थाई, तिम श्रद्धा रुचिना परिणाम मन नोलास थाई! जिवारें पृथ्वी आदि थाई, ते माहिथी अंकुरा प्रगटै, ते अंकुरा बे पल्लव थाई, ते बे पल्लव किहा, एक देशवति, ते देशवति कोण ? बार व्रतधारी श्रावक, ते बार व्रत किहां ? थूल प्राणातिपात, थूल मृषावाद, थूल अदत्तादान, थूल मैथुन, थूल परिग्रह (विरमण) / त्रिण गुणवत, च्यार शिक्षावत, एवं बारे व्रत; एते एक पान. बीजुं महाव्रत-महाव्रत कहतां मोटुं छ, एहवं श्री साधुजीई अंगीकार कर्यु छै, एहवां बे पांन नीकल्यां / तेमांहीथी साखा नोकली, ते केइ ? भावनारूप शाषा नीकली, संयमनी 25 भावना महाव्रतनी, ए रूप शाषा नीकली, शाषा मांहिथी फूल नीकल्यां, ते फूल किंहां जे थकी फल प्रगटैं। ते फल किहां मोक्षफल परमानंद सुखपणुं प्रगटै / स्वसभाव प्रगटैं, क्षायिक भाव, आत्मपद वर्या, अनंतानंत सिद्धना गुण प्रगट्या, आत्मप्रदेशे अनंती वार कर्मनी वर्गणाओ, एकएक प्रदेशे ते, ए थकी अंतरायनौ क्षय करी निरावर्ण(रण) थई / एकएक प्रदेशें अनंती रोस गुणनी प्रगटी, एहवी स्याद्वादवांणी जिनेश्वरनी, तेहनी झेलणहार, एहवा गणवर भगवानइ नमस्कार करीने श्री वोर उपदेशने विषं सागरनी परें गंभीर छै / जिम सागर मध्ये 14 लाष 56 हजार नदी जै समुदर भेली थाई तिम ए ग्रंथने विषे मोटा समुदर सिरिषा जिनभाषित सिद्धांत, ते सिद्धांतसमुद्र माहिथी एक लव मात्र झेलांणो, तेतलां अमृतबिंदु स्वाद पामीए, ते वली श्रीगुरु कृपाई करी, ते गुरु केहवा छै ? अज्ञान तिमरना हरनारा छइं, ज्ञानप्रकासक छै, प्रभू मार्गना संसारना तारणहार हैं। बीजा समुद्रनों पार आवइं, पण संसार समुदरनो पार पांमवो महाधणुं दुर्लभ छै / ते समुद्रनों पार श्रीगुरुवादिकथी पाम्यां / ते संसारसमुद्र तारवानई प्रवहण सरिषा छै, ते प्रवहण मैं बे गुण छिः पोति तरई, नई बीजानई तारई / ते वास्ते गुरु योते तरे

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