Book Title: Navgranthi
Author(s): Yashodevsuri
Publisher: Yashobharti Jain Prakashan Samiti
View full book text
________________ उपाध्याययशोविजयिवरचित 'जम्हा णेगतियं वज़' महाभाष्ये / [ ] // 26 // जलजीवना अनाभोगथी नद्युत्तार जो दृष्ट न होइ तो सचित्त जलपानइं पाणि दोष न हुओ जोइंइ // 27 // भगवदुपदेश वस्तुस्वरूपावबोधक ज होइ, पणि नद्युत्तारइं पणि विराधनांशइ अज्ञानथी एहवं जो कहई छई, तेहनइ कहीइ जे फलरूप विराधनामांहि आज्ञा नथी, कइ व्यापाररूपमांहि प्रथमपक्ष तो अम्हारइ ज इष्टज छइ, द्वितीय पक्ष तो कही न शकाई, जे माटिं-जे उत्तानकल तेहज वधानुकूल छई, ते भिन्न किम थाई? ते मार्टि व्यवहारथो विधिनिषेध बाह्यवस्तुमांहि कामचारइं होई, निश्चयथी तो शुभभावनो ज विधि छई इम सदहवं. उक्तं च ण वि किंचि अणुण्णायं, पडिसिद्धं वा वि जिणवरिंदेहि / एसा तेर्सि आणा, कज्जे सच्चे ण होतत्वं // 1 // -बृहत्कल्पे [सं.२३३०] // 28 // यतनांशइं ज उपदेश पणि विराधनांशइं नही, इम कोइ कहई छई. तहेनई 'जयं चरे' [दश. वै.] इत्यादिक पणि संपूर्ण प्रमाण न थाई // 29 // अपवादवचनकल्प्यतादिवस्तुस्वरू गरबोधक छइ, पणि प्रवृत्ति ते स्वौचित्यज्ञानई ज इम कोइ कहइ छइ, ते मुग्धलोकने भवसमुद्रमांहि बोलइ छइ. जे मार्टि-वचननइ प्रवर्तकपणुं एह जे कल्प्यताबोधनइं इच्छाजनकपणुं ते उत्सर्गविधिमांहि अपवादविधिमांहि भिन्न नथी, // 30 // एणि करी पंचिंदियववरोवणा वि कप्पइ' [ ] इम निशिथचूर्णि कहिउं छई, पणि हणवो एम नथो कहिउं. एहवो भाषा साधुनई न होइ, इम कोइ कहइ छइं, ते शब्दपरावर्त्तमात्र, जे माटई अकल्प्यनइं कल्प्यता पणि भारववी सूत्रिं कही नथी'तहेव संखडि नच्चा, किच्चं कज्जति णो वए / ' ___-दशवकालिके / [7-36] // 31 // अपवादइ पणि 'हन्तव्यः' [ ] इम कहिइ तो"सव्वे पाणा सव्वे भूया सव्वे जोवा सत्ता न हंतव्वा" [आ. अ, 4 उ. 1] ए वचननो विरोध थाइ इम कोइ कहइ छइ ते जूटुं; जे माटि ए सूत्रनो विषय अविधिनिषेध ज श्रीहरिभद्रसरि पदार्थ वाक्यार्थ महावाक्यार्थ ऐदम्पर्यार्थ विचारी कहिओ छई. तथा परितापनानो साक्षात् उपदेश पणि भगवतीसूत्रिं दिसइ छइ -- 1. उत्तारानुकूल इति पाठां० /

Page Navigation
1 ... 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320