Book Title: Navgranthi
Author(s): Yashodevsuri
Publisher: Yashobharti Jain Prakashan Samiti

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Page 281
________________ विचारविः आहच्च हिंसा समियस्स जा तु सा दव्वती होइ ण भावओ य। भावेन हिंसा उ असंजयस्स जे वा वि सत्ते ण सदा वहेइ // 2 // सम्पत्ति तस्सेव जदा भविज्जा, सा दुव्वहिंसा खलु भावओ य / अज्झत्थसुद्धस्स जदा ण होज्जा, वधेण जोगो दुहओ व हिंसा // 3 // [स० 3932-34] - इहां "सिद्धांते योगमात्रप्रत्ययादेव न हिंसोपवर्ण्यते, अप्रमत्तसंयतादीनां सयोगिकेवलिपर्यन्तानां योगवतामपि तदभावात्" [3932 श्लोकवृत्तिः] ए वृत्ति वचनई स्पष्ट ज आद्य चतुर्थभंगस्वामी अप्रमत्तादिक सयोगिकेवलिपर्यन्त सरखा ज कहिया छइ, तथा यदा शब्दई चतुर्थभंगस्वामी सदाइ केवली होइ ए निःसंदेह जाणवू // 42 // "जीवेणं भंते ! सया समियं*(तं ?) एयइ, चलइ, फदइ, घुट्टइ, खुल्भइ तं तं भाव परिणमइ ? हंता मंडियपुत्ता जोवेणं सया समियं एयइ वेयइ जाव परिणम // जावं च णं भंते ! से जीवे सया समियं जाव तं तं भावं परिणमइ, तावं च तं तस्स जोवस्सं अंते अंतकिरिया भवइ ? णो इणद्वे समढे // से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ, जावं च णं से जीवे सया समियं जाव अन्ते अन्तकिरिया ण (न) भवइ ? मंडियपुत्ता ! जावं च णं से जाव सया समियं जाव परिणमइ, तावं च णं से जीवे-आरभइ सारभइ समारभइ, आरंभे वट्टइ सारंभे वट्टइ समारंभे वाइ, आरंभमाणे सारंभमाणे समारंभमाणे, आरंभे वट्टमाणे सारंभे वट्टमाणे समारंभे वट्टमाणे, बहूर्ण पाणाणं भूयाणं जीवाणं सत्ताणं दुक्खावणाए सायावणयाए जूरावणयाए तिप्पावणयाए पिटावणयाए परित्ता (या ?) वणयाए वट्टइ // से तेणडेणं मंडियपुत्ता ! एवं वुच्चइ, जावं च णं से जीवे सया समियं पयई जाव परिणमइ, ताव च णं तस्स जीवस्स अंते अंतकिरिया ण हवइ+" [भ.श,३.उ.३] ए भगवतीनो आलावो छइं इहां आरंभादिनई एजनादिक्रियाव्याप्ति यथासंभव जाणवी जिम "एस जीवे एयइ जाव तं तं भावं परिणभइ, ताव णं अट्ठविहबंधए वा सत्तविहबंधए वा छविहबंधए वा एगविहबंधए वा नो णं अबंधए वा" [ ] इहां अनइ आरंभादिकनइ अंतक्रियाप्रतिबंधकपणुं स्थूलव्यवहारनई इम वृद्धव्याख्यान करई छई, अनइ बीजइ पणि प्रवचनपरीक्षावृत्तिमध्ये इम ज लख्यु छइ, तथाहि "सुमुनोनां-शोभना मुनयः सुमुनयः-सुसाधवस्तेषामप्रमत्तगुणस्थानकादारम्य त्रयोदशगुणस्थानं यावदारंभप्रवर्तमानानामप्यारंभिकी क्रिया न भवतीत्यादि" [भ.श,१.उ.२] 1. अन्यत्र णकार स्थाने नकारश्रुति दरीदृश्यते / 2. अधिष्ठिहिआ' पाठां० / 3. 'देही' इति पाठां / 4. होति' इति पाठां० / 5. 'तु' इति पाठां / * पाठांतरे सर्वत्र 'त' इति पाठः / + भवइ इति पाठांतरे /

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