Book Title: Navgranthi
Author(s): Yashodevsuri
Publisher: Yashobharti Jain Prakashan Samiti
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________________ उपाध्याययशोविजयविरचितं ते वीसारीनइं शतकग्रंथमध्ये इम लख्यु छइ जे, एजनादिक्रियाव्यापारकारम्भादिवाच्य योगज कहिई, पाणि आरंभादि एजनादिजन्य नहीं, जिम धूम व्यापक वह्नि, धूमजन्य नहीं, ते योगने प्रतिबंधइ अंतक्रिया न होइं ए अभिप्राय साचो नहीं, जे माहि-कल्पभाष्यई हिंसान्वितयोगइ आरंभप्रसंगि ए आलावो देखाड्यो छइ तिहां द्रव्यवध फलाव्यो छइं, तथा योगनिरोधइ योगप्रतिबंधक न कहिवाई, जिम घटनाशइ घट तथा आरंभादि 3, शब्दई एक योगनो अर्थ कहिइ, तो 'अरिहंते वा अरिहंतचेइआणि वा' ए 2, शब्दे एक अर्थ कहइ छइ ते सरखा थाव्युं पडई ते रुडी परि विचारीनइ वडेरानुं वचन मानवें // 43 // "से अभिक्कममाणे पडिक्कममाणे संकुचमाणे पसारेमाणे विणिट्टमाणे संपलिमज्जमाणे / एगया गुणसमियस्स रीयओ कायसंकासं समणुचिन्ना एगतिआ पाण उद्दायति / इहलोगवंदणंविज्जावडियं / आउट्टि कम्म, तं परिणाए विवेगमेति"आचारांगे लोकसाराध्ययने / [अ.५,उ.४] इहां चउदमा गुणडाणा तांइ कायस्पर्शई जीववध कहिओ छई, यदृत्तिः * अत्र च कर्मबन्धं प्रति विचित्रता, तथाहि—"शैलेश्यवस्थायां मशकादीनां कायस्पर्शेन प्राणत्यागेऽपि पञ्चविधोपादानकारणाभावान्नास्ति बन्धः उपशान्त-क्षोणमोह-सयोगिकेलिनां स्थितिनिमित्तकषायाभावात् सामयिकः, अप्रमत्तयतेर्जघन्यतोऽन्तमुहूर्त्तम् , उत्कर्षतश्चान्तकोटाकोटिस्थितिरिति, प्रमत्तस्य त्वनानाकुट्टिकयाऽनुपेत्य प्रवृत्तस्य क्वचित्पाण्याद्यवयवसंस्पर्शात्प्राण्युपतापनादौ जघन्यतः कर्मबन्ध उत्कर्षतश्च प्राक्तन एव विशेषिततरः" / इत्यादी [आ.५,उ.४ नीटोका] इहां केवलो गुर्वादेशविधायी नथी ते माटइं नावइ, इम कोइ कहई छई, ते केवलिग्राहक वृत्तिकार साहमो थाइ छई, तेहनो प्रतीकार इभ कोजई जे-केवली पणि फलतः गुर्वादेश विधायी छई, जिम कहिउं "किं ते भंते ! जस्त्ता सो मिलाज मे तवणियमसंजमसज्झायझाणावस्सयमाईस जोएसु जयणा"[ ] ए फलथी ज उपपादिउं छइं // 44 // प्रायिं असंभवी संभवइं ते अवश्यंभावी द्रव्यवध कहिइं, जिम अनाभोगथी अप्रमत्तनइं ते केवलीनइं न होइ, जे माटि-अवश्य भावनो नियामक अनाभोग नथी इम कोइ कहइ छइं ते जूटुं जे मार्टि अनभिमत थकई अवर्जनीयसंनिधिक ते अवश्यंभावी कहई, तेहवो द्रव्यवध-केवलीनइ पणि संभवइ // 45 // जिम-साध्वादिनिमित्त झोपसर्गादि साधादिव्यापारविना साध्वादिकर्तृक न होइं, तिम अयोगिशरीरनिमित्तकमशकादिवब अयोगिकर्त न होइ, किंतु मशकादिकर्तृक सयोगिकेवलोनई तिम न कहिवाई, जे माटि-तेहनइ योग छइ, तेहर्नु अन्वयव्यतिरेकानुविधान मशकादिवधनइ छई * मुद्रित आचाराङ्गटीकायां किञ्चित्पाठभेदो प्रवर्तते /

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