Book Title: Navgranthi
Author(s): Yashodevsuri
Publisher: Yashobharti Jain Prakashan Samiti
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________________ विचारविन्दु सामान्य सूत्रई 20, भव जिम न घटई, तिम विशेषसूत्रइ 15 न घटई, इम कोइ कहई छई. ते पणि जूटुं; जे मार्टि सामान्य सूत्र नारक भव टाली जमालि सरिखानु ज कहिउं छई, नहीं तो 'मत्येगइआ अणादीयं अणवदग्गदीहमध्धं चाउरतसंसारकतार अणुपरिमति' [श. 9. उ. 32] ए बीजुं सूत्र नि मिलहं // 4 // अत्यंगइआ [ ] इत्यादि स्त्र अभव्यविषय अंतिं निर्वाण नथी कहिउं ते माटई इम कोइ कहई छई ते मिथ्या, जे माटिइ___ 'असंवुडे णं अणगारे आउयवज्जाओ. सत्त कम्मपयडिओ सिढिलबंधणबद्धाओ घणियबंधणबद्धाओ पकरेइ, तस्स कालट्ठितिआओ दोहकालद्वितियाओ पकरेइ, मंदाणुभावाओ तिव्वाणुभावाओ पकरेइ, अप्पपदेसग्गाओ बहुप्पदेसग्गाओ पकरेइ, आउयं च णं कम्मसिय बंधह, सिय णो बंधइ, अरसायावेयणिज्जं च णं कम्म भुज्जो भुजो उवचिणाइ, अणाईयं च अणवदग्गदीहमद्ध चाउरतं संसारकतार अणुपरिअट्टइ.' [भ. श. 1. उ. 1] इत्यादिक सूत्रइ अंति निर्वाण नथो कहिउं, अनइ अभव्यविषय ते सूत्र नथी // 45 // चत्तारि पंच कहितां 5, ज किम होइ ! इम कोइ पूछइ तेहनइ उत्तर-जिम 'सत्तद्रुपयाई सत्तटुभवग्गहणाई' इत्यादिक स्थानई आठज कहिइ तिम ए सूत्र शैलि छइं // 46 // जमालि 15, अनइ सुबाहुकुमारनइ 16, भव होइ, तो आज्ञाराधनथी विराधन भलु, इम कोइ कहई छई, ते उल्लंठ वचन जाणवू, जे मार्टि दृढ़प्रहारि प्रमुख महाहिंसकनइ तद्भविं मुक्ति, आनंदांदिकनइ भवांतरि तो सुकृतथी दुष्कृत भलं, इम कहितां पणि मूर्खमुख कोण ढांकइ // 47 // मरीचिनइ संदिग्ध उत्सूत्रथी कोटाकोटिसंसार. जमालिनइ निश्चित उत्सूत्रथी पणि 15 भव ए किम घटइं ! इम कोइक संदेह धरइ, तेहनई कहिइं जे-इहां तथाभव्यत्व विशेष ज नियामक, नहीं तो उभयवादिसिद्ध नरकगति निषेधइस्यु. नियामक ते प्रीछज्यो // 48 // // श्रीरस्तु॥ केवलीनइ जीवरक्षाप्रयत्न विफल न होई, तो वीर्यान्तरायक्षय निरर्थक थइ. ते माटि केवलिना योग हिंसास्वरूपायोग्य कल्पिई, इम कोइक तार्किकमन्य कहई छई. ते जूढुं. जिम वाग्योगविशेषइं सफल छै, तिम जीवरक्षाकाययोगशक्यस्थानई सफल छई. तेहमांहि दोष नथी, नहीं तो जीवरक्षा सफलतानइ अर्थि जिम केवलियोग हिंसास्वरूपायोग्य मानो छो, तिम परीषहजय यत्न सफलतानइं अर्थि केवलियोगक्षुत्पिपासादिस्वरूपायोग्य कल्पीनई दिगंबरमत का नथी अनुसरतां // 1 //

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