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वाले तथा दूर दूर से भी साधु-साध्वियां अपने प्रियशास्ता के दर्शनार्थ आए। दर्शनार्थ आए हुए साधुओं की संख्या 71 थी और साध्वियों की संख्या 40 के करीब हो गई थी। ____ कैंसर का रोग प्रतिदिन उपचार होने पर भी बढ़ता ही गया। जिससे आप श्री जी के भौतिक वपुरत्न में शिथिलता अधिक से अधिक बढ़ती चली गयी। अन्ततोगत्वा आप श्री जी ने दिनांक 30-1-62 को प्रातः दस बजे अपच्छिममारणन्तिय संलेखना करके अनशन कर दिया। दिन भर दर्शनार्थियों का तांता लगा रहा, आचार्य प्रवर जी शान्तावस्था में पूर्ण होश के साथ अन्तर्ध्यान में मग्न रहे। रात के दस बजे के समीप डा. श्यामसिंह जी आए और पूज्यश्री से पूछा-'अब आप का क्या हाल है ?' पूज्य श्री जी ने शान्तचित्त से उत्तर दिया-"अच्छा हाल है," इतना कहकर पुनः अन्तर्ध्यान में संलग्न हो गए। ज्वर 106 डिग्री चढ़ा हुआ था, किन्तु देखने वालों को ऐसा प्रतीत होता था कि उन्हें कोई भी पीड़ा नहीं है। इतनी महावेदना होने पर भी परम शान्ति झलक रही थी। रात के 12 बजे तारीख बदली और 31 जनवरी प्रारंभ हुई। रात के दो बजे का समय हुआ, मैं भी उस समय सेवा में उपस्थित था। ठीक दो बजकर 20 मिनट पर पूज्य श्री आत्माराम जी म. अमर हो गए। माघवदी नवमी और दसमी की मध्यरात्रि को नश्वर शरीर का परित्याग किया। संयमशीलता, सहिष्णुता, गम्भीरता, विद्वत्ता, दीर्घदर्शिता, सरलता, नम्रता आदि पुण्यपुंज से वे महान थे। उन के प्रत्येक गुण मुमुक्षुओं के लिए अनुकरणीय हैं। यह है नन्दीसूत्र के हिन्दी व्याख्याकार की अनुभूत और संक्षिप्त दिव्य कहानी।