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नागरीप्रचारिणी पत्रिका संयुत्तनिकाय में
"भगवान्' ...पूर्वाराम में...सायंकाल को...पीछे की ओर धूप में पीठ तपाते बैठे हुए थे। प्रायुष्मान प्रानंद भगवान् के पास गए।...और हाथ से भगवान के शरीर को रगड़ते हुए उनसे बोले
आश्चर्य है भंते ! अब भगवान् ...का छवि-वर्ग उतना परिशुद्ध नहीं रहा। गात्र शिथिल है, सब झुर्रियाँ पड़ गई हैं, शरीर सामने झुका हुआ है। चतु...(आदि) इंद्रियों में भी विपरीतता दिखलाई पड़ती है।"
इस पर अटकथा में है-"प्रासाद पूर्व और छाया से ढंका था, इसी लिये प्रासाद के पश्विम-दिशाभाग में धूप थी। उस स्थान पर... बैठे थे।...यह हिम पड़ने का शीत समय था, उस वक्त महाचीवर को उतारकर सूर्यकिरणों से पीठ को तपाते हुए बैठे थे।"
इनसे ये बाते और मालूम होती हैं
(१५) उस समय तथागत के शरीर में झुर्रियाँ पड़ गई थी, आँखो आदि की रोशनी में अंतर आ गया था ।
(१६) प्रधान द्वार पूर्व और था, तभी पीछे की ओर' कहा गया है। संयुत्तनिकाय ही में है
"मोग्गलान ने...पैर के अँगूठे से मिगारमाता के प्रासाद को हिलाया।...उन भिक्षुओं ने कहा)...यह मिगारमाता का प्रासाद गंभीरनेम, सुनिखात, अचल, प्रसंपकंपि है..."
अट्ठकथा में गंभीरनेम का अर्थ 'गंभीर भूमिभाग में प्रतिष्ठित' किया है। और 'सुनिखात' का, कूटकर अच्छा तरह स्थापित ।"
इनसे
(१७ ) पूर्वाराम ऊँची और दृढ़ मि में बनाया गया था।
(१) सं. नि., ५.६:२६, पृष्ठ २७ ।
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