Book Title: Nagri Pracharini Patrika Part 15
Author(s): Shyamsundardas
Publisher: Nagri Pracharini Sabha

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Page 493
________________ ४७६ नागरीप्रचारिणी पत्रिका कालिदास के समय के नागरिकों के स्वतंत्र जीवन में पर्दा स्वभाव से ही वर्ण्य था। यद्यपि कालिदास के ग्रंथों में अवरोधगृह . और अंत:पुर के अनेकों वर्णन मिलते हैं जिनका पर्दे की प्रथा " तात्पर्य गृह के अंतरंग ( private ) से है तथापि उनसे यह भाव नहीं निकाला जा सकता कि उनके अंदर स्त्रियाँ गुप्त, पर्दे के भीतर रखी जाती थीं। उनका तात्पर्य केवल उन अंतरंग कक्षों और आँगनों से है जिनका गृह में होना नितांत आवश्यक है। जब कभी स्वयं पुरुष को गृह में एकांतता की आवश्यकता पड़ती है तो लज्जाधनी महिलाओं को क्यों न रही हो। फिर उन्हें तो कई प्रकार के प्राचार-नियमों का अनुसरण करना होता था; इसलिये अवरोधगृह अथवा अंत:पुर का अस्तित्व पर्दा को प्रमाणित नहीं करता। इसके अतिरिक्त भारतीय स्त्रियाँ तो सार्वजनिक सड़कों से जाकर नदियों में, सबके सामने गाती हुई, स्नान करती थीं और नगर की दीर्घिकाओं में जलक्रीड़ा करती थों । दोलाधिरोहण (झूला) भी उनका एक प्रमुख व्यसन था। फिर उन्हें पदे में रहनेवाली कैसे कहा जा सकता है ? परंतु इसका यह अर्थ नहीं है कि भारतीय महिलाएँ आधुनिक पाश्चात्य जगत् की स्त्रियों की भाँति सर्वत्र पुरुषों में अनियंत्रित घूमती थीं। लज्जा स्त्रियों का सर्वोत्तम गुण समझा जाता था और इस हेतु बाहर गुरुजनों के सम्मुख वे सदा अवगुंठन सहित निकलती थीं। इस अवगुंठन को आज का पर्दा नहीं समझना चाहिए। इसका प्रयोग केवल लज्जाभाव से होता था, भीत्यर्थ नहीं। पति के साथ (१) रघु०, १६, ६४ । (२) वही, १६, १३। (३) मालविका०, ३ । (४) अभि. शाकुं०,। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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